भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"कभी विनय कभी नज़र कभी वफ़ा हूँ मैं/ विनय प्रजापति 'नज़र'" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
पंक्ति 4: पंक्ति 4:
 
}}
 
}}
 
[[Category:ग़ज़ल]]
 
[[Category:ग़ज़ल]]
'''लेखन वर्ष: २००५''' <br/><br/>
+
'''लेखन वर्ष: २००५'''
कभी विनय कभी नज़र कभी वफ़ा हूँ मैं<br/>
+
<poem>
तुझसे हूँ या न हूँ पर खु़द से ख़फ़ा हूँ मैं<br/><br/>
+
'''रचना काल: २००५'''
चला जो मंज़िल को हाइल हर गाम मिले<br/>
+
रहे-इश्क़ में भी दुनिया से बँधा हूँ मैं<br/><br/>
+
तुम जिस राह चले चलो मैं भी चला चलूँ<br/>
+
जिससे कोई न गुज़रा वह रास्ता हूँ मैं<br/><br/>
+
मेरा कोई खु़दा नहीं मेरे खु़दा बन जाओ<br/>
+
सच मानो तुम्हें देखकर बदल गया हूँ मैं<br/><br/>
+
मेहरो-मोहब्बत का नामो-निशाँ तक नहीं<br/>
+
जाने-मन तेरे लिए बहुत तरसा हूँ मैं<br/><br/>
+
मसाइले-जहान से यह दिल नाचार है<br/>
+
खा़मोश क्यों रहूँ’ क्या कोई पारसा हूँ मैं<br/><br/>
+
  
'''''हाइल''': बाधक । '''मसाइले-जहान''': दुनिया की मुश्किलें । '''पारसा''': महात्मा''
+
कभी विनय कभी नज़र कभी वफ़ा हूँ मैं
 +
तुझसे हूँ या न हूँ, खु़द से ख़फ़ा हूँ मैं
 +
 
 +
चला जो मंज़िल को हाइल<ref>बाधक</ref> हर गाम मिले
 +
रहे-इश्क़ में भी दुनिया से बँधा हूँ मैं
 +
 
 +
तुम जिस राह पे ले चलो मैं चला चलूँ
 +
बारिश में बहता हुआ रास्ता हूँ मैं
 +
 
 +
खु़दा नहीं मेरा, मेरे खु़दा बन जाओ
 +
सच है तुम्हें देखकर बदल गया हूँ मैं
 +
 
 +
मेहरो-मोहब्बत का नामो-निशाँ तक नहीं
 +
जाने-मन तेरे लिए बहुत तरसा हूँ मैं
 +
 
 +
मसाइले-जहान<ref>दुनिया की मुश्किलें</ref> से यह दिल नाचार है
 +
चुप क्यों रहूँ? क्या कोई पारसा<ref>महात्मा</ref> हूँ मैं
 +
 
 +
{{KKMeaning}}
 +
</poem>

00:48, 20 मार्च 2011 का अवतरण

लेखन वर्ष: २००५

रचना काल: २००५

कभी विनय कभी नज़र कभी वफ़ा हूँ मैं
तुझसे हूँ या न हूँ, खु़द से ख़फ़ा हूँ मैं

चला जो मंज़िल को हाइल<ref>बाधक</ref> हर गाम मिले
रहे-इश्क़ में भी दुनिया से बँधा हूँ मैं

तुम जिस राह पे ले चलो मैं चला चलूँ
बारिश में बहता हुआ रास्ता हूँ मैं

खु़दा नहीं मेरा, मेरे खु़दा बन जाओ
सच है तुम्हें देखकर बदल गया हूँ मैं

मेहरो-मोहब्बत का नामो-निशाँ तक नहीं
जाने-मन तेरे लिए बहुत तरसा हूँ मैं

मसाइले-जहान<ref>दुनिया की मुश्किलें</ref> से यह दिल नाचार है
चुप क्यों रहूँ? क्या कोई पारसा<ref>महात्मा</ref> हूँ मैं

शब्दार्थ
<references/>