"होली-1 / नज़ीर अकबराबादी" के अवतरणों में अंतर
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− | हुआ जो आके निशाँ आश्कार होली का । | + | हुआ जो आके निशाँ आश्कार<ref>व्यक्त, ज़ाहिर</ref> होली का । |
− | बजा रबाब से मिलकर सितार होली का । | + | बजा रबाब<ref>सारंगी की तरह का एक वाद्ययंत्र</ref> से मिलकर सितार होली का । |
− | सुरुद रक़्स हुआ बेशुमार होली का । | + | सुरुद<ref>गाना</ref> रक़्स<ref>नृत्य</ref> हुआ बेशुमार होली का । |
हँसी-ख़ुशी में बढ़ा कारोबार होली का । | हँसी-ख़ुशी में बढ़ा कारोबार होली का । | ||
ज़ुबाँ पे नाम हुआ बार-बार होली का ।।1।। | ज़ुबाँ पे नाम हुआ बार-बार होली का ।।1।। | ||
ख़ुशी की धूम से हर घर में रंग बनवाए । | ख़ुशी की धूम से हर घर में रंग बनवाए । | ||
− | गुलाल अबीर के भर-भर के थाल रखवाए । | + | गुलाल<ref>एक तरह की लाल बुकनी, जिसे होली के दिनों पर लोग एक-दूसरे के चेहरों पर मलते हैं</ref> अबीर<ref>अभ्रक का चूर्ण</ref> के भर-भर के थाल रखवाए । |
नशों के जोश हुए राग-रंग ठहराए । | नशों के जोश हुए राग-रंग ठहराए । | ||
झमकते रूप के बन-बन के स्वाँग दिखलाए । | झमकते रूप के बन-बन के स्वाँग दिखलाए । | ||
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बदन में भीगे हैं कपड़े, गुलाल चेहरों पर । | बदन में भीगे हैं कपड़े, गुलाल चेहरों पर । | ||
मची यह धूम तो अपने घरों से ख़ुश होकर । | मची यह धूम तो अपने घरों से ख़ुश होकर । | ||
− | तमाशा देखने निकले निगार होली का ।।3।। | + | तमाशा देखने निकले निगार<ref>प्रेमपात्र</ref> होली का ।।3।। |
बहार छिड़कवाँ कपड़ों की जब नज़र आई । | बहार छिड़कवाँ कपड़ों की जब नज़र आई । | ||
हर इश्क़ बाज़ ने दिल की मुराद भर पाई । | हर इश्क़ बाज़ ने दिल की मुराद भर पाई । | ||
− | निगाह लड़ाके पुकारा हर एक शैदाई । | + | निगाह लड़ाके पुकारा हर एक शैदाई<ref>प्रेमी, आशिक</ref> । |
मियाँ ये तुमने जो पोशाक अपनी दिखलाई । | मियाँ ये तुमने जो पोशाक अपनी दिखलाई । | ||
− | ख़ुश आया अब हमें, नक़्शो-निगार होली का ।।4।। | + | ख़ुश आया अब हमें, नक़्शो-निगार<ref>बेल-बूटे, फूल-पत्ती</ref> होली का ।।4।। |
तुम्हारे देख के मुँह पर गुलाल की लाली । | तुम्हारे देख के मुँह पर गुलाल की लाली । | ||
हमारे दिल को हुई हर तरह की ख़ुशहाली । | हमारे दिल को हुई हर तरह की ख़ुशहाली । | ||
− | निगाह ने दी, मये गुल रंग की भरी प्याली । | + | निगाह ने दी, मये<ref>शराब</ref> गुल रंग की भरी प्याली । |
जो हँस के दो हमें प्यारे तुम इस घड़ी गाली । | जो हँस के दो हमें प्यारे तुम इस घड़ी गाली । | ||
तो हम भी जानें कि ऐसा है प्यार होली का ।।5।। | तो हम भी जानें कि ऐसा है प्यार होली का ।।5।। | ||
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उधर से रंग लिए आओ तुम इधर से हम । | उधर से रंग लिए आओ तुम इधर से हम । | ||
गुलाल अबीर मलें मुँह पे होके ख़ुश हर दम । | गुलाल अबीर मलें मुँह पे होके ख़ुश हर दम । | ||
− | ख़ुशी से बोलें हँसे होली खेल कर बाहम । | + | ख़ुशी से बोलें हँसे होली खेल कर बाहम<ref>आपस में</ref> । |
बहुत दिनों से हमें तो तुम्हारे सर की कसम । | बहुत दिनों से हमें तो तुम्हारे सर की कसम । | ||
इसी उम्मीद में था इन्तिज़ार होली का ।।8।। | इसी उम्मीद में था इन्तिज़ार होली का ।।8।। | ||
− | बुतों की गालियाँ हँस-हँस के कोई सहता है । | + | बुतों<ref>प्रिय पात्र</ref> की गालियाँ हँस-हँस के कोई सहता है । |
गुलाल पड़ता है कपड़ों से रंग बहता है । | गुलाल पड़ता है कपड़ों से रंग बहता है । | ||
लगा के ताक कोई मुँह को देख रहता है । | लगा के ताक कोई मुँह को देख रहता है । |
03:38, 21 मार्च 2011 का अवतरण
हुआ जो आके निशाँ आश्कार<ref>व्यक्त, ज़ाहिर</ref> होली का ।
बजा रबाब<ref>सारंगी की तरह का एक वाद्ययंत्र</ref> से मिलकर सितार होली का ।
सुरुद<ref>गाना</ref> रक़्स<ref>नृत्य</ref> हुआ बेशुमार होली का ।
हँसी-ख़ुशी में बढ़ा कारोबार होली का ।
ज़ुबाँ पे नाम हुआ बार-बार होली का ।।1।।
ख़ुशी की धूम से हर घर में रंग बनवाए ।
गुलाल<ref>एक तरह की लाल बुकनी, जिसे होली के दिनों पर लोग एक-दूसरे के चेहरों पर मलते हैं</ref> अबीर<ref>अभ्रक का चूर्ण</ref> के भर-भर के थाल रखवाए ।
नशों के जोश हुए राग-रंग ठहराए ।
झमकते रूप के बन-बन के स्वाँग दिखलाए ।
हुआ हुजूम अजब हर किनार होली का ।।2।।
गली में कूचे में ग़ुल शोर हो रहे अक्सर ।
छिड़कने रंग लगे यार हर घड़ी भर-भर ।
बदन में भीगे हैं कपड़े, गुलाल चेहरों पर ।
मची यह धूम तो अपने घरों से ख़ुश होकर ।
तमाशा देखने निकले निगार<ref>प्रेमपात्र</ref> होली का ।।3।।
बहार छिड़कवाँ कपड़ों की जब नज़र आई ।
हर इश्क़ बाज़ ने दिल की मुराद भर पाई ।
निगाह लड़ाके पुकारा हर एक शैदाई<ref>प्रेमी, आशिक</ref> ।
मियाँ ये तुमने जो पोशाक अपनी दिखलाई ।
ख़ुश आया अब हमें, नक़्शो-निगार<ref>बेल-बूटे, फूल-पत्ती</ref> होली का ।।4।।
तुम्हारे देख के मुँह पर गुलाल की लाली ।
हमारे दिल को हुई हर तरह की ख़ुशहाली ।
निगाह ने दी, मये<ref>शराब</ref> गुल रंग की भरी प्याली ।
जो हँस के दो हमें प्यारे तुम इस घड़ी गाली ।
तो हम भी जानें कि ऐसा है प्यार होली का ।।5।।
जो की है तुमने यह होली की तरफ़ा तैयारी ।
जो हँस के देखो इधर को भी जान यक बारी ।
तुम्हारी आन बहुत हमको लगती है प्यारी ।
लगा दो हाथ से अपने जो एक पिचकारी ।
तो हम भी देखें बदन पे सिंगार होली का ।।6।।
तुम्हारे मिलने का रखकर हम अपने दिल में ध्यान ।
खड़े हैं आस लगाकर कि देख लें एक आन ।
यह ख़ुशदिल का जो ठहरा है आन कर सामान ।
गले में डाल कर बाहें ख़ुशी से तुम ऐ जान !
पिन्हाओ हम को भी एकदम यह हार होली का ।।7।।
उधर से रंग लिए आओ तुम इधर से हम ।
गुलाल अबीर मलें मुँह पे होके ख़ुश हर दम ।
ख़ुशी से बोलें हँसे होली खेल कर बाहम<ref>आपस में</ref> ।
बहुत दिनों से हमें तो तुम्हारे सर की कसम ।
इसी उम्मीद में था इन्तिज़ार होली का ।।8।।
बुतों<ref>प्रिय पात्र</ref> की गालियाँ हँस-हँस के कोई सहता है ।
गुलाल पड़ता है कपड़ों से रंग बहता है ।
लगा के ताक कोई मुँह को देख रहता है ।
’नज़ीर’ यार से अपने खड़ा ये कहता है ।
मज़ा दिखा हमें कुछ तू भी यार होली का ।।9।।