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18:38, 28 मार्च 2011 का अवतरण
हेमंत गइस जाड़ा भागिस, आइस सुख के दाता बसंत
जइसे सब-ला सुख देये बर आ जाथे कोन्हो साधु-संत ।
बड़ गुनकारी अब पवन चले, चिटको न जियानय जाड़ घाम
ये ऋतु-माँ सुख पाथयं अघात, मनखे अउ पशु-पंछी तमाम ।
जम्मो नदिया-नरवा मन के, पानी होगे निच्चट फरियर
अउ होगे सब रुख-राई के, डारा -पाना हरियर-हरियर ।
चंदा मामा बाँटयं चाँदी अउ सुरुज नरायन देय सोन
इनकर साहीं पर-उपकारी, तुम ही बताव अउ हवय कोन ?
बन,बाग,बगइचा लहलहायं, झूमय अमराई-फुलवारी
भांटा, भाजी, मुरई, मिरचा-मा, भरे हवय मरार-बारी ।
बड़ सुग्घर फूले लगिन फूल, महकत हें-मन-ला मोहत हें
मंदरस के माँछी रस ले के, छाता-मा अपन संजोवत हें ।
सरसों ओढिस पींयर चुनरी, झुमका-झमकाये हवयं चार
लपटे-पोटारे रुख मन-ला, ये लता-नार करथयं दुलार ।
मउरे-मउरे आमा रुख-मन , दीखयं अइसे दुलहा -डउका
कुलकय, फुदकय, नाचय, गावय, कोयली गीत ठउका-ठउका ।
बन के परसा मन बाँधे हें, बड़ सुग्घर केसरिया फेंटा
फेंटा- मा कलगी खोंचे हें, दीखत हें राजा के बेटा ।
मोती कस टपकयं महुआ मन, बनवासी बिनत-बटोरत हें
बेंदरा साहीं चढ़ के रुख-मा गेदराये तेंदू टोरत हें ।
मुनगा फरगे, बोइर झरगे, पाकिस अँवरा, झर गईस जाम
"फरई-झरई, बरई-बुतई" जग में ये होते रथे काम ।
लुवई-मिंजई सब्बो हो गे अउ धान धरागे कोठी-मा
बपुरा कमिया राजी रहिथयं, बासी- मा अउर लंगोटी-मा ।
अब कहूँ, चना, अरसी, मसूर के भर्री अड़बड़ चमकत हें
बड़ नीक चंदैनी रात लगय डहँकी बस्ती-मा झमकत हें ।
ढोलक बजायं, दादरा गायं, गायं ठेलहा-मा दाई-माई मन
ठट्ठा, गम्मत अउ काम-बुता, सब करयं ननद-भउजाई मन ।
कोन्हों मन खेत जायं अउ बटुरा-फली लायं भर के झोरा
अउ कोन्हों लायं गदेली गहूँ-चना भूँजे खातिर होरा ।
अब चेलिक-मोटियारिन मन के,खेले-खाए के दिन आइस
डंडा - फुगड़ी अउ रिलो-फाग , नाचे-गाये के दिन आइस ।
गुन, गुन, गुन, गुन करके भउंरा मन, गुन बसंत के गात हवयं
अउ रटयं 'राम-धुन' सूवा मन, कठखोलवा ताल बजात हवयं ।
कवि मन के घलो कलम चलगे, बिन लोहा के नाँगर साहीं,
अउहा -तउहा लिख डारत हें, जे मन में भाय कुछू कांही ।
होले तिहार अब त हवय, हम एक रंग रंग जाबो जी,
"हम एक हवन, हम नेक हवन" दुनिया ला आज बताबो जी ।
एकर कतेक गुन गाई हम, ये ऋतु के महिमा हे अनंत
आथय सबके जिनगानी-मा, गर्मी, बरखा, जाड़ा, बसंत ।