"मेरा बसंत / मंगत बादल" के अवतरणों में अंतर
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18:57, 28 मार्च 2011 के समय का अवतरण
आपके आता होगा बसंत 
फागुन में ।
यहां तो भाई आषाढ़ में
यदि आसमान फूट जाए
और जम जाए बाजरे की जड़,
फैल जाए 
काकड़िये-मतीरों की बेलें
मूंग-मोठ धरती को ढक लें
तो सावन-भादवे से 
सभी ऋतुएं नीचे है ।
यह थार है ! थार !!
यहां सारी ऋतुएं अलग है
दुनिया से । 
यहां बचपन से सीधा 
बुढ़ापा आता है ;
जवानी का पन्ना 
ना जाने कौन फाड़ जाता है ?
जिन्दगी एक एक सांस से
धक्का-मुक्की करती है 
रात के सन्नाटे में 
रेत भी गीत गाती सुनाई दे जाएगी 
कुदरत भी यहां 
नित-नए खेल रचती है ।
रेत के इस तपते समंदर में 
धोरों की ढलान पर
हठ जोगी-सा
एक टांग पर खड़ा है खेजड़ा
गहरी साधना में व्यस्थ है,
और तपती दोपहरी में बोलती कमेड़ी
किसी भक्त-सी
रामनामी घुन में मस्त है ।
यहां प्रत्येक जीव सांस-सांस में
जिंदगी से जंग करता है 
वह चित्रण आपको यहां कहां मिलेंगे,
जहां फागुन 
फूल-फूल में नए-नए रंग भरता है ?
अनुवाद : नीरज दइया
 
	
	

