भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"देखो बसन्त आ गया / शास्त्री नित्यगोपाल कटारे" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
छो () |
Pratishtha (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 3: | पंक्ति 3: | ||
|रचनाकार= शास्त्री नित्यगोपाल कटारे | |रचनाकार= शास्त्री नित्यगोपाल कटारे | ||
|संग्रह= | |संग्रह= | ||
− | }} | + | }}{{KKAnthologyBasant}} |
{{KKCatKavita}} | {{KKCatKavita}} | ||
<Poem> | <Poem> |
19:10, 28 मार्च 2011 के समय का अवतरण
पीत पीत हुए पात
सिकुड़ी-सिकुड़ी सी रात
ठिठुरन का अन्त आ गया
देखो बसन्त आ गया ।
मादक सुगन्ध से भरी
पन्थ पन्थ आम्र मंजरी
कोयलिया कूक कूक कर
इतराती फिरस बबरी
जाती है जहाँ दृष्टि
मनहारी सकल सृष्टि
लास्य दिग्दिगन्त छा गया
देखो बसन्त आ गया ।
शीशम के तारुण्य का
आलिंगन करती लता
रस का अनुरागी भ्रमर
कलियों का पूछता पता
सिमटी सी खड़ी भला
सकुचायी शकुन्तला
मानो दुष्यन्त आ गया
देखो बसन्त आ गया ।
पर्वत का ऊँचा शिखर
ओढ़े है किंशुकी सुमन
सरसों के फूलों भरा
मादक बासन्ती उपवन
करने कामाग्नि दहन
केशरिया वस्त्र पहन
मानों कोई सन्त आ गया
देखो बसन्त आ गया ।।