भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"दिन बसन्त के / ठाकुरप्रसाद सिंह" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=ठाकुरप्रसाद सिंह |संग्रह=वंशी और मादल / ठाकुरप्रसाद स...) |
Pratishtha (चर्चा | योगदान) |
||
(एक अन्य सदस्य द्वारा किया गया बीच का एक अवतरण नहीं दर्शाया गया) | |||
पंक्ति 3: | पंक्ति 3: | ||
|रचनाकार=ठाकुरप्रसाद सिंह | |रचनाकार=ठाकुरप्रसाद सिंह | ||
|संग्रह=वंशी और मादल / ठाकुरप्रसाद सिंह | |संग्रह=वंशी और मादल / ठाकुरप्रसाद सिंह | ||
− | }} | + | }}{{KKAnthologyBasant}} |
− | + | {{KKCatKavita}} | |
+ | {{KKCatNavgeet}} | ||
+ | <poem> | ||
दिन बसन्त के | दिन बसन्त के | ||
− | |||
राजा-रानी-से तुम दिन बसन्त के | राजा-रानी-से तुम दिन बसन्त के | ||
− | |||
आए हो हिम के दिन बीतते | आए हो हिम के दिन बीतते | ||
− | |||
दिन बसन्त के | दिन बसन्त के | ||
− | |||
पात पुराने पीले झरते हैं झर-झर कर | पात पुराने पीले झरते हैं झर-झर कर | ||
− | |||
नई कोंपलों ने शृंगार किया है जी भर | नई कोंपलों ने शृंगार किया है जी भर | ||
− | |||
फूल चन्द्रमा का झुक आया है धरती पर | फूल चन्द्रमा का झुक आया है धरती पर | ||
− | |||
अभी-अभी देखा मैंने वन को हर्ष भर | अभी-अभी देखा मैंने वन को हर्ष भर | ||
− | |||
कलियाँ लेते फलते, फूलते | कलियाँ लेते फलते, फूलते | ||
− | |||
झुक-झुककर लहरों पर झूमते | झुक-झुककर लहरों पर झूमते | ||
− | |||
आए हो हिम के दिन बीतते | आए हो हिम के दिन बीतते | ||
− | |||
दिन बसन्त के | दिन बसन्त के | ||
+ | </poem> |
19:11, 28 मार्च 2011 के समय का अवतरण
दिन बसन्त के
राजा-रानी-से तुम दिन बसन्त के
आए हो हिम के दिन बीतते
दिन बसन्त के
पात पुराने पीले झरते हैं झर-झर कर
नई कोंपलों ने शृंगार किया है जी भर
फूल चन्द्रमा का झुक आया है धरती पर
अभी-अभी देखा मैंने वन को हर्ष भर
कलियाँ लेते फलते, फूलते
झुक-झुककर लहरों पर झूमते
आए हो हिम के दिन बीतते
दिन बसन्त के