भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"भूखों का कैसा हो वसन्त / राजकुमार कुंभज" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=राजकुमार कुंभज }} <poem> भूखों का कैसा हो वसन्त? चारो...)
 
 
पंक्ति 2: पंक्ति 2:
 
{{KKRachna
 
{{KKRachna
 
|रचनाकार=राजकुमार कुंभज  
 
|रचनाकार=राजकुमार कुंभज  
}}
+
}}{{KKAnthologyBasant}}
 +
{{KKCatKavita}}
 
<poem>
 
<poem>
 
भूखों का कैसा हो वसन्त?
 
भूखों का कैसा हो वसन्त?

19:20, 28 मार्च 2011 के समय का अवतरण

भूखों का कैसा हो वसन्त?
चारों तरफ़ से बरसती हो रोटियाँ
और भरे हों गोदाम

नंगों का कैसा हो वसन्त?
चारों तरफ़ से टपकती हो लंगोटियाँ
और झरता हो कपास

मूर्खों का कैसा हो वसन्त?
चारों तरफ़ से निकलती हों गोलियाँ
और मचता हो आतंक!