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"नींद में बारिश / तुषार धवल" के अवतरणों में अंतर

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नींद में  
 
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सबके सो जाने पर  
 
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होती है बारिश  
 
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अकेले ही भीगते हैं  
 
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नदी नाव और टापू  
 
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रात की खोह में  
 
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दलदल है  
 
दलदल है  
 
 
इत्र का  
 
इत्र का  
 
 
बारिश के झिरमिर सन्नाटे में  
 
बारिश के झिरमिर सन्नाटे में  
 
 
जो एकदम से महक उठता है  
 
जो एकदम से महक उठता है  
 
 
शिरीष खिलता है  
 
शिरीष खिलता है  
 
 
उनींदी बारिशों में  
 
उनींदी बारिशों में  
 
 
भीग कर आयी हवाएँ  
 
भीग कर आयी हवाएँ  
 
 
घुस आती हैं  
 
घुस आती हैं  
 
 
कोरे लिहाफ़ के भीतर  
 
कोरे लिहाफ़ के भीतर  
 
 
चौंक कर ताकता है  
 
चौंक कर ताकता है  
 
 
गरदन उठाए  
 
गरदन उठाए  
 
 
एक बगूला  
 
एक बगूला  
 
 
किसी गली से झाँकता है चोर  
 
किसी गली से झाँकता है चोर  
 
 
  
 
इच्छाएँ  
 
इच्छाएँ  
 
 
पैदा करके मुझे  
 
पैदा करके मुझे  
 
 
मेरा ही  
 
मेरा ही  
 
 
शिकार करती हैं।  
 
शिकार करती हैं।  
 
 
  
 
गाथाएँ अन्तर्दहन की  
 
गाथाएँ अन्तर्दहन की  
 
 
चुपचाप भीगती हैं  
 
चुपचाप भीगती हैं  
 
 
गीले-गीले ही  
 
गीले-गीले ही  
 
 
जल रहे हैं पत्ते  
 
जल रहे हैं पत्ते  
 
 
  
 
भीगी हुई  
 
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रात के पिछवाड़े में  
 
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जले पत्ते  
 
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आग की कहानी कहते हैं
 
आग की कहानी कहते हैं
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18:51, 31 मार्च 2011 के समय का अवतरण

नींद में
सबके सो जाने पर
होती है बारिश
अकेले ही भीगते हैं
नदी नाव और टापू
रात की खोह में
दलदल है
इत्र का
बारिश के झिरमिर सन्नाटे में
जो एकदम से महक उठता है
शिरीष खिलता है
उनींदी बारिशों में
भीग कर आयी हवाएँ
घुस आती हैं
कोरे लिहाफ़ के भीतर
चौंक कर ताकता है
गरदन उठाए
एक बगूला
किसी गली से झाँकता है चोर

इच्छाएँ
पैदा करके मुझे
मेरा ही
शिकार करती हैं।

गाथाएँ अन्तर्दहन की
चुपचाप भीगती हैं
गीले-गीले ही
जल रहे हैं पत्ते

भीगी हुई
रात के पिछवाड़े में
जले पत्ते
आग की कहानी कहते हैं