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"घास / समुद्र पर हो रही है बारिश / नरेश सक्सेना" के अवतरणों में अंतर

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19:01, 31 मार्च 2011 के समय का अवतरण

वही जो घोड़े की नसों में ख़ून बनकर दौड़ती है
जो गाय के थनों में दूध बनकर फूटती है
वही
जो बिछी रहती है धरती पर
और कुचली जाती रहती है लगातार
कि अचानक एक दिन
महल की मीनारों और क़िले की दीवारों पर
शान से खड़ी हो जाती है
उन्हें ध्वस्त करने की शुरूआत करती हुई