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"मां है रेशम के कारखाने में / अली सरदार जाफ़री" के अवतरणों में अंतर
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जिस्म चांदी का धन लुटाएगा | जिस्म चांदी का धन लुटाएगा | ||
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खून इसका दिए जलायेगा | खून इसका दिए जलायेगा | ||
20:22, 31 मार्च 2011 का अवतरण
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मां है रेशम के कारखाने में
बाप मसरूफ सूती मिल में है
कोख से मां की जब से निकला है
बच्चा खोली के काले दिल में है
जब यहाँ से निकल के जाएगा
कारखानों के काम आयेगा
अपने मजबूर पेट की खातिर
भूक सरमाये की बढ़ाएगा
हाथ सोने के फूल उगलेंगे
जिस्म चांदी का धन लुटाएगा
खिड़कियाँ होंगी बैंक की रौशन
खून इसका दिए जलायेगा
यह जो नन्हा है भोला भाला है
खूनीं सरमाये का निवाला है
पूछती है यह इसकी खामोशी
कोई मुझको बचाने वाला है!