"जब भी तेरा नाम याद आयेगा/ विनय प्रजापति 'नज़र'" के अवतरणों में अंतर
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− | + | मेरा चाँद कब लौट के आयेगा | |
− | + | वो फ़रवरी की धूप देखी नहीं | |
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− | + | ख़ुशज़बाँ<ref>अच्छी बातें करने वाला</ref> बिना ख़ुशियाँ परायी हैं | |
− | + | अब ग़मज़दा<ref>दु:ख का डर</ref> होके जिया जायेगा | |
− | + | तारीख़ों की तारीक़<ref>अंधेरा</ref> में चाँद गुम | |
− | + | रोशनी कौन कैसे उगायेगा | |
− | + | जब भी पढ़ा इस ग़ज़ल को आँखों ने | |
− | + | चेहरा तेरा ही झिलमिलायेगा | |
− | + | ख़ुशबू तेरी इक-इक हर्फ़ में है | |
− | + | हरेक अस्लूब<ref>नियम या शैली</ref> निभाया जायेगा | |
− | + | क़यामत की रात जब भी आयेगी | |
− | + | ज़ुबाँ पर तेरा ही नाम आयेगा | |
− | + | ‘नज़र’ की हर ख़ाहिश तुम हो शीना<ref>प्रेयसी, जिसमें रोशनी की तरह दिव्यता हो</ref> | |
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02:31, 1 अप्रैल 2011 के समय का अवतरण
लेखन वर्ष: २००२
जब भी तेरा नाम याद आयेगा
मेरी किताबों में पाया जायेगा
वो रातें गुज़रे अगस्त की रातें
मेरा चाँद कब लौट के आयेगा
वो फ़रवरी की धूप देखी नहीं
बसंत शाख़ों पे कैसे आयेगा
ख़ुशज़बाँ<ref>अच्छी बातें करने वाला</ref> बिना ख़ुशियाँ परायी हैं
अब ग़मज़दा<ref>दु:ख का डर</ref> होके जिया जायेगा
तारीख़ों की तारीक़<ref>अंधेरा</ref> में चाँद गुम
रोशनी कौन कैसे उगायेगा
जब भी पढ़ा इस ग़ज़ल को आँखों ने
चेहरा तेरा ही झिलमिलायेगा
ख़ुशबू तेरी इक-इक हर्फ़ में है
हरेक अस्लूब<ref>नियम या शैली</ref> निभाया जायेगा
क़यामत की रात जब भी आयेगी
ज़ुबाँ पर तेरा ही नाम आयेगा
‘नज़र’ की हर ख़ाहिश तुम हो शीना<ref>प्रेयसी, जिसमें रोशनी की तरह दिव्यता हो</ref>
तुम्हें न पाया तो क्या पायेगा