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गाँव मेरा
होता जा रहा है सुनसान
कालीथान का पीपल
हो गया है अकेला
क्यों जमती जा रही है
थाक-थाक भर धूल यहाँ ?
तीरडंडी स्वामी की मठिया पर
नहीं बैठ रही अब
गाँव की कोई संसद
उठती जा रही हैं
गाँव की चौपालें
लोगों ने कम कर दिया है क्यों
-कालीथान पर बैठना
-मठिया पर जमा होना
-देश-दुनिया पर बहस करना
-अपनी भूमिका तय करना !
कुछ सुना आपने ?
मँगवा लिया है मुखिया ने रंगीन टीवी
और अब बनकर हँसमुख
देने लगे हैं पनाह
पूरे गाँव को
बंद दरवाज़े के भीतर
दालान में
तमाम लोग बैठ गए हैं चुप
गोजी रखकर
मुखिया के बंद दालान में
टीवी के सामने
बटेसर काका ने रख दी है
बगल में वह लाठी
जिससे मार गिराया था
क्रूर अंग्रेज कमिश्नर को
और लड़ते रहे थे बीस साल
लगातार
मुस्कान में डूब रहा है
रघुवा भी बैठा
देख-देख रंगीन चित्र
जिसने हिला दिए थे
अंगद-पाँव मुखिया के
पिछले चुनाव में
मुखिया के बंद दालान में
अँकवार भर की एक मशीन बोल रही है
और सुन रहा है
सारा का सारा गाँव
चुपचाप और चकाचौंध
पाँव तुड़ाकर बैठा
कैसे टूटेंगी दालान की
चाक-चौबंद दीवारें ?
कौन खुरचेगा यह चकाचौंध
और नीम मुर्दनी ?
पंचायत के गुंबद को
कौन मुक्त कराएगा सर्पपाश से ?
अब तो उकेरनी ही चाहिए
यह राख
और यह चिंगारी...