भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"अरमान मेरे दिल का निकलने नहीं देते / अकबर इलाहाबादी" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
छो
 
पंक्ति 6: पंक्ति 6:
 
<poem>
 
<poem>
 
ख़ातिर से तेरी याद को टलने नहीं देते
 
ख़ातिर से तेरी याद को टलने नहीं देते
सच है कि हमीं दिल को संभलने नहीं देते
+
सच है कि हम ही दिल को संभलने नहीं देते
  
आँखें मुझे तल्वों से वो मलने नहीं देते
+
आँखें मुझे तलवों से वो मलने नहीं देते
 
अरमान मेरे दिल का निकलने नहीं देते
 
अरमान मेरे दिल का निकलने नहीं देते
  

14:53, 1 अप्रैल 2011 के समय का अवतरण

ख़ातिर से तेरी याद को टलने नहीं देते
सच है कि हम ही दिल को संभलने नहीं देते

आँखें मुझे तलवों से वो मलने नहीं देते
अरमान मेरे दिल का निकलने नहीं देते

किस नाज़ से कहते हैं वो झुंझला के शब-ए-वस्ल<ref>मिलन की रात</ref>
तुम तो हमें करवट भी बदलने नहीं देते

परवानों ने फ़ानूस को देखा तो ये बोले
क्यों हम को जलाते हो कि जलने नहीं देते

हैरान हूँ किस तरह करूँ अर्ज़-ए-तमन्ना
दुश्मन को तो पहलू से वो टलने नहीं देते

दिल वो है कि फ़रियाद से लबरेज़<ref>भरा हुआ</ref> है हर वक़्त
हम वो हैं कि कुछ मुँह से निकलने नहीं देते

गर्मी-ए-मोहब्बत में वो है आह से माअ़ने
पंखा नफ़स-ए-सर्द<ref>ठंडी सांस</ref> का झलने नहीं देते

शब्दार्थ
<references/>