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"कब लोगों ने अल्फ़ाज़ के / अख़्तर नाज़्मी" के अवतरणों में अंतर

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मैंने तो कभी फूल मसल कर नहीं फेंके
 
मैंने तो कभी फूल मसल कर नहीं फेंके
  
वैसे तो इरादा नहीं तोबा शिकनी का
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वैसे तो इरादा नहीं तौबा शिकनी का
 
लेकिन अभी टूटे हुए साग़र नहीं फेंके  
 
लेकिन अभी टूटे हुए साग़र नहीं फेंके  
  

15:03, 1 अप्रैल 2011 के समय का अवतरण

कब लोगों ने अल्फ़ाज़ के पत्थर नहीं फेंके
वो ख़त भी मगर मैंने जला कर नहीं फेंके

ठहरे हुए पानी ने इशारा तो किया था
कुछ सोच के खुद मैंने ही पत्थर नहीं फेंके

इक तंज़ है कलियों का तबस्सुम भी मगर क्यों
मैंने तो कभी फूल मसल कर नहीं फेंके

वैसे तो इरादा नहीं तौबा शिकनी का
लेकिन अभी टूटे हुए साग़र नहीं फेंके

क्या बात है उसने मेरी तस्वीर के टुकड़े
घर में ही छुपा रक्खे हैं बाहर नहीं फेंके

दरवाज़ों के शीशे न बदलवाइए नज़मी
लोगों ने अभी हाथ से पत्थर नहीं फेंके