भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"पूरा दुःख और आधा चाँद / परवीन शाकिर" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=परवीन शाकिर |संग्रह=खुली आँखों में सपना / परवीन …) |
Pratishtha (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 3: | पंक्ति 3: | ||
|रचनाकार=परवीन शाकिर | |रचनाकार=परवीन शाकिर | ||
|संग्रह=खुली आँखों में सपना / परवीन शाकिर | |संग्रह=खुली आँखों में सपना / परवीन शाकिर | ||
− | }} | + | }}{{KKAnthologyChand}} |
+ | {{KKCatKavita}} | ||
{{KKCatGhazal}} | {{KKCatGhazal}} | ||
<poem> | <poem> |
22:44, 1 अप्रैल 2011 का अवतरण
पूरा दुःख और आधा चाँद
हिज्र की शब् और ऐसा चाँद
किस मकतल से गुज़रा होगा
ऐसा सहमा सहमा चाँद
यादों की आबाद गली में
घूम रहा है तनहा चाँद
मेरे मुहँ को किस हैरत से
देख रहा है भोला चाँद
इतने घने बादल के पीछे
कितना तनहा होगा चाँद
इतने रोशन चेहरे पर भी
सूरज का है साया चाँद
जब पानी में चेहरा देखा
तूने किसका सोचा चाँद
बरगद की एक शाख़ हटाकर
जाने किसको झाँका चाँद
रात के शाने पर सर रक्खे
देख रहा है सपना चाँद
सहरा सहरा भटक रहा है
अपने इश्क में सच्चा चाँद
रात के शायद एक बजे हैं
सोता होगा मेरा चाँद