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"जैसे चाँद पर से दिखती धरती. / हरजेन्द्र चौधरी" के अवतरणों में अंतर
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ऐसे दिख रही है ज़िन्दगी | ऐसे दिख रही है ज़िन्दगी |
22:46, 1 अप्रैल 2011 के समय का अवतरण
ऐसे दिख रही है ज़िन्दगी
कविता में
जैसे चाँद पर से
दिखती धरती
हेलीकॉप्टर से दिखती
चढ़ी हुई नदी और बाढ़
उतनी दूर नहीं
पर जितनी साफ़ उजली बेपर्द
बिल्कुल नंगी उद्विग्न
साबुत और तार-तार
घुटनों तक धँसी आत्मा
लिथड़ी है कीचड़ में
चाँद पर सुनाई पड़ रही
धरती की चीख़-पुकार...
रचनाकाल : 1999, नई दिल्ली