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"कहीं चांद राहों में खो गया / बशीर बद्र" के अवतरणों में अंतर
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कहीं चांद राहों में खो गया कहीं चांदनी भी भटक गई | कहीं चांद राहों में खो गया कहीं चांदनी भी भटक गई |
23:25, 1 अप्रैल 2011 का अवतरण
कहीं चांद राहों में खो गया कहीं चांदनी भी भटक गई
मैं चराग़ वो भी बुझा हुआ मेरी रात कैसे चमक गई
मेरी दास्ताँ का उरूज था तेरी नर्म पलकों की छाँव में
मेरे साथ था तुझे जागना तेरी आँख कैसे झपक गई
कभी हम मिले तो भी क्या मिले वही दूरियाँ वही फ़ासले
न कभी हमारे क़दम बढ़े न कभी तुम्हारी झिझक गई
तुझे भूल जाने की कोशिशें कभी क़ामयाब न हो सकीं
तेरी याद शाख़-ए-गुलाब है जो हवा चली तो लचक गई