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{{KKRachna
|रचनाकार=दुष्यंत कुमार
|संग्रह=सूर्य का स्वागत / दुष्यन्त दुष्यंत कुमार
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<poem>
सद्यस्नात<ref>इसी समय नहाई हुई, तुरन्त नहाकर आना</ref> तुम
जब आती हो
मुख कुन्तलों<ref>केश, बाल</ref> से ढँका रहता है
बहुत बुरे लगते हैं वे क्षण जब
राहू से चाँद ग्रसा रहता है ।