भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"उसने मुझसे बोला झूठ/ कुमार अनिल" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Kumar anil (चर्चा | योगदान) (नया पृष्ठ: <poem>उसने मुझसे बोला झूठ अपना पहला पहला झूठ ताकतवर था खूब मगर फिर भी …) |
Kumar anil (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 17: | पंक्ति 17: | ||
चलता खुल्लम खुल्ला झूठ | चलता खुल्लम खुल्ला झूठ | ||
− | शक्ल | + | शक्ल हमेशा सच की एक |
पल पल रूप बदलता झूठ | पल पल रूप बदलता झूठ | ||
+ | |||
+ | इस दुनिया की मंडी में | ||
+ | सच से महंगा बिकता झूठ | ||
सच से बढ़ कर लगा मुझे | सच से बढ़ कर लगा मुझे |
22:43, 5 अप्रैल 2011 के समय का अवतरण
उसने मुझसे बोला झूठ
अपना पहला पहला झूठ
ताकतवर था खूब मगर
फिर भी सच से हारा झूठ
अब मैं तुझको भूल गया
आधा सच है आधा झूठ
सच से आगे निकल गया
गूंगा, बहरा, अंधा झूठ
कुछ तो सच के साथ रहे
ज्यादातर को भाया झूठ
जग में खोटे सिक्के सा
चलता खुल्लम खुल्ला झूठ
शक्ल हमेशा सच की एक
पल पल रूप बदलता झूठ
इस दुनिया की मंडी में
सच से महंगा बिकता झूठ
सच से बढ़ कर लगा मुझे
उसका प्यारा प्यारा झूठ
माँ से बढ़कर पापा हैं
कितना भोला भाला झूठ
सच ने क्या कम घर तोड़े
बदनाम हुआ बेचारा झूठ