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"पत्तों की मृत्यु / मंगलेश डबराल" के अवतरणों में अंतर

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कितने सारे पत्ते उड़कर आते हैं
 
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चेहरे पर मेरे बचपन के पेड़ों से
 
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एक झील अपनी लहरें  
 
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मुझ तक भेजती है
 
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लहर की तरह काँपती है रात
 
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और उस पर मैं चलता हूँ
 
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चेहरे पर पत्तों की मृत्यु लिए हुए
 
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चिड़िया अपने हिस्से की आवाज़ें
 
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कर चुकी हैं, लोग जा चुके हैं
 
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रोशनियाँ राख हो चुकी हैं
 
रोशनियाँ राख हो चुकी हैं
 
 
सड़क के दोनों ओर
 
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घरों के दरवाज़े बन्द हैं
 
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मैं आवाज़ देता हूँ
 
मैं आवाज़ देता हूँ
 
 
और वही लौट आती है मेरे पास ।
 
और वही लौट आती है मेरे पास ।
 
  
 
(रचनाकाल :1979)
 
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01:56, 6 अप्रैल 2011 के समय का अवतरण

कितने सारे पत्ते उड़कर आते हैं
चेहरे पर मेरे बचपन के पेड़ों से
एक झील अपनी लहरें
मुझ तक भेजती है
लहर की तरह काँपती है रात
और उस पर मैं चलता हूँ
चेहरे पर पत्तों की मृत्यु लिए हुए

चिड़िया अपने हिस्से की आवाज़ें
कर चुकी हैं, लोग जा चुके हैं
रोशनियाँ राख हो चुकी हैं
सड़क के दोनों ओर
घरों के दरवाज़े बन्द हैं
मैं आवाज़ देता हूँ
और वही लौट आती है मेरे पास ।

(रचनाकाल :1979)