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"मौत से आगे सोच के आना फिर जी लेना / अब्दुल अहद ‘साज़’" के अवतरणों में अंतर
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02:04, 6 अप्रैल 2011 के समय का अवतरण
मौत से आगे सोच के आना फिर जी लेना
छोटी छोटी बातों में दिलचस्पी लेना
जज़्बों के दो घूँट अक़ीदों<ref>श्रद्धाओं</ref> के दो लुक़मे<ref>निवाले</ref>
आगे सोच का सेहरा<ref>रेगिस्तान</ref> है, कुछ खा-पी लेना
नर्म नज़र से छूना मंज़र की सख़्ती को
तुन्द हवा से चेहरे की शादाबी<ref>ताज़गी</ref> लेना
आवाज़ों के शहर से बाबा ! क्या मिलना है
अपने अपने हिस्से की ख़ामोशी लेना
महंगे सस्ते दाम , हज़ारों नाम थे जीवन
सोच समझ कर चीज़ कोई अच्छी सी लेना
दिल पर सौ राहें खोलीं इनकार ने जिसके
‘साज़’ अब उस का नाम तशक्कुर<ref>शुक्रिया / धन्यवाद</ref> से ही लेना
शब्दार्थ
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