भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"कवितावली/ तुलसीदास / पृष्ठ 16" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=तुलसीदास }} {{KKCatKavita}} Category:लम्बी रचना {{KKPageNavigation |पीछे=क…) |
|||
पंक्ति 12: | पंक्ति 12: | ||
<poem> | <poem> | ||
− | '''सुन्दर काण्ड''' | + | '''सुन्दर काण्ड प्रारंभ ''' |
'''( अशोक वन )''' | '''( अशोक वन )''' |
20:11, 6 अप्रैल 2011 के समय का अवतरण
सुन्दर काण्ड प्रारंभ
( अशोक वन )
बासव-बरून बिधि-बनतें सुहावनो,
दसाननको काननु बसंत को सिंगारू सेा।
समय पुराने पात परत, डरत बातु,
पालत लालत रति-मारके बिहारू सेा।।
देखें बर बापिका तड़ाग बागको बनाड,
रागबस भो बिरागी पवनकुमारू सो।
सीयकी दसा बिलोकि बिटप असोक तर,
‘तुलसी’ बिलोक्यो सो तिलोक-सोक -सारू सो।।
मली मेघमाल, बनपाल बिकराल भट,
नींके सब काल सींचेैं सुधासार नीरके।
मंघनाद तें दुलारो, प्रान तें पियारो बागु,
अति अनुरागु जियँ जातुधान धीर कें।।
‘तुलसी’ सो जानि-सुनि, सीयकेा दरसु पाइ,
पैठेा बाटिकाँ बजाइ बल रघुबीर कें।
बिद्यमान देखत दसाननको काननु सेा ।
तहस -नहस कियो साहसी समीर कें।।