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"नाक़ाबिल ए फ़रामोश / ज़िया फ़तेहाबादी" के अवतरणों में अंतर
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कर गए हैं दिल में घर कुछ इस तरह | कर गए हैं दिल में घर कुछ इस तरह | ||
मैं वो बीते दिन भुला दूँ किस तरह | मैं वो बीते दिन भुला दूँ किस तरह | ||
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07:16, 7 अप्रैल 2011 के समय का अवतरण
दिल को दीवाना बनाना याद है
मस्तियाँ हर सू लुटाना याद है
सहन ए गुलशन में बसद हुस्न ओ जमाल
रोज़ ताज़ा गुल खिलाना याद है
मुस्करा कर देखना मेरी तरफ़
देख कर फिर मुस्कराना याद है
मुझ से रफ़्ता रफ़्ता वो खुलना तेरा
नीची नज़रों को उठाना याद है
कर गए हैं दिल में घर कुछ इस तरह
मैं वो बीते दिन भुला दूँ किस तरह