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"प्लेटफार्म के भिखमंगे / मनोज श्रीवास्तव" के अवतरणों में अंतर

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ये हट्टे-कटते भिखमंगे
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ये हट्टे-कट्टे भिखमंगे
 
चलते अकड़कर, डंडे पकड़कर
 
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हाथ झुलाते हुए बण्डल जकड़कर
 
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पैर पटककर  
 
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धुँआए ओठों पर जीभ लिसोढ़कर,
 
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गुठलियाँ चिचोराते
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गुठलियाँ चिचोरते
 
पालीथीन पलटकर  
 
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माल चिसोरते,
 
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फिस्स-फिस्स हंस देते,
 
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फिर, अपनी केहुनियों पर
 
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बचपन से जमी कई
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निकोरते बहलते  
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ये मनमौजी, मुस्टंडे  
 
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सोते-सोते गठरी में  
 
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अपने हाथ डालकर  
 
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हफ्ते-भर पुरानी रोटियाँ टटोलते
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ऐसी हिफाज़त से आश्वस्त हो लेते
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गहरी नींद में जाकर
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कोठियों के कुत्तों संग
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पल दो पल रह लेते
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तब, इतरते
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इस खुशकिस्मत पर
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वो तंदुरुस्त भिखमंगे
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ये टर्र टर्र टर्राते
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टिटिहरे-से भिखमंगे,
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है नहीं कोई भी
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खानदानी भिखमंगे,
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जीभ पर हथेली रख
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पेट पर पथेली रख,
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रिरियाते-घिघियाते
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टिनही-सी छिपली में
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भूख परोस देते
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बदतमीज़ सेठाइनों के
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आवश्यक कर्मों के
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उत्पादन भिखमंगे
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राष्ट्रीय विकास के
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बरकत-से भिखमंगे
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गोरे हैं, चिट्टे भी
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लम्बे हैं. लट्ठे भी
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सींकिया हैं, पट्ठे भी
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नानाविध नस्लों के
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वैरायटी भिखमंगे
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शरणार्थी अम्माओं के
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ब्राह्मणी कुंवारियों के
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ठकुराइन मनचलियों के
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जाए हुए. लाए हुए
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करमजले, कलमुंहे
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कौव्वे-से भिखमंगे
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अमरीकी-यूरोपीय बीज थे
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हिन्दुस्तानी नग्नाओं में 
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रोपित थे
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ताज या रीगल
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या फाइव स्टार में झेली थी उनने भी
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नौमासीय पीड़ाएं,
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पीटा था कमबख्त भ्रूण को
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बेहया था स्साला वो
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मुआ नहीं, आ टपका
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पिच्च-पिच्च प्लेटफार्मों पर,
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कुत्तों ने पाला इन्हें,
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पनाह दी बिल्लियों ने
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तंग-तंग मांदों में
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क्या खाकर सांस बची
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हवा पीकर उठ-बैठे,
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पुलिस की दुलत्तियों से
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पैरों पर खड़े हुए,
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चल पड़े तो छिनैती की
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मेमों  को धक्के दिए
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पर्स छीन, भाग लिए
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मौज भी उड़ाए खूब
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हेरोइनों में डूब-डूब
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सेकेण्ड-हैण्ड पैंटों में
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पान चबाए हुए
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बड़े-बड़े बाबुओं पर
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रोब भी ग़ालिब किए,
 +
ये रोबदार, तेवरदार
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नक्शेबाज भिखमंगे
 +
 
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पता नहीं कैसे ये
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एड्स या हेरोइनों से
 +
जराग्रस्त हो करके,
 +
चंद ही महीनों में
 +
भूख से, प्यास से
 +
गू-मूत खा करके
 +
पगलाए, बौराए
 +
लस्त-पस्त चलते हुए
 +
पाला और शीत के
 +
ग्रास बने भिखमंगे
 +
ये कामग्रस्त, कालग्रस्त
 +
कायर-से भिखमंगे.

11:58, 8 अप्रैल 2011 के समय का अवतरण


प्लेटफार्म के भिखमंगे


ये हट्टे-कट्टे भिखमंगे
चलते अकड़कर, डंडे पकड़कर
हाथ झुलाते हुए बण्डल जकड़कर
ठिठुरकर, सिकुड़कर
पैर पटककर
धुँआए ओठों पर जीभ लिसोढ़कर,
गुठलियाँ चिचोरते
पालीथीन पलटकर
माल चिसोरते,
छीजनों पर झपटकर
खबरहे कुत्तों संग
ओठ-मुंह निपोरते

ये खूंसट, खबीस
और खींझते भिखमंगे
रेंगते पटरियों पर नंगे-अधनंगे
समेटते बिखरे हुए जिस्मानी हिज्जे
अपनी टांग गठरी में
भूले से रख देते,
कुत्ते नहाते देख
फिस्स-फिस्स हंस देते,
फिर, अपनी केहुनियों पर
बचपन से जमी काई
निकोरते, बहलते

ये मनमौजी, मुस्टंडे
मस्त-मस्त भिखमंगे,
मिल जाता खा लेते
ना मिलता सो लेते,
सोते-सोते गठरी में
अपने हाथ डालकर
हफ्ते-भर पुरानी रोटियाँ टटोलते
 
ऐसी हिफाज़त से आश्वस्त हो लेते
गहरी नींद में जाकर
कोठियों के कुत्तों संग
पल दो पल रह लेते
तब, इतरते
इस खुशकिस्मत पर
 
वो तंदुरुस्त भिखमंगे
ये टर्र टर्र टर्राते
टिटिहरे-से भिखमंगे,
है नहीं कोई भी
खानदानी भिखमंगे,
जीभ पर हथेली रख
पेट पर पथेली रख,
रिरियाते-घिघियाते
टिनही-सी छिपली में
भूख परोस देते
 
बदतमीज़ सेठाइनों के
आवश्यक कर्मों के
उत्पादन भिखमंगे
 
राष्ट्रीय विकास के
बरकत-से भिखमंगे
 
गोरे हैं, चिट्टे भी
लम्बे हैं. लट्ठे भी
सींकिया हैं, पट्ठे भी
नानाविध नस्लों के
वैरायटी भिखमंगे
 
शरणार्थी अम्माओं के
ब्राह्मणी कुंवारियों के
ठकुराइन मनचलियों के
जाए हुए. लाए हुए
करमजले, कलमुंहे
कौव्वे-से भिखमंगे
 
अमरीकी-यूरोपीय बीज थे
हिन्दुस्तानी नग्नाओं में
रोपित थे
ताज या रीगल
या फाइव स्टार में झेली थी उनने भी
नौमासीय पीड़ाएं,
पीटा था कमबख्त भ्रूण को
बेहया था स्साला वो
मुआ नहीं, आ टपका
पिच्च-पिच्च प्लेटफार्मों पर,
कुत्तों ने पाला इन्हें,
पनाह दी बिल्लियों ने
तंग-तंग मांदों में

क्या खाकर सांस बची
हवा पीकर उठ-बैठे,
पुलिस की दुलत्तियों से
पैरों पर खड़े हुए,
चल पड़े तो छिनैती की
मेमों को धक्के दिए
पर्स छीन, भाग लिए
मौज भी उड़ाए खूब
हेरोइनों में डूब-डूब
सेकेण्ड-हैण्ड पैंटों में
पान चबाए हुए
बड़े-बड़े बाबुओं पर
रोब भी ग़ालिब किए,
ये रोबदार, तेवरदार
नक्शेबाज भिखमंगे

पता नहीं कैसे ये
एड्स या हेरोइनों से
जराग्रस्त हो करके,
चंद ही महीनों में
भूख से, प्यास से
गू-मूत खा करके
पगलाए, बौराए
लस्त-पस्त चलते हुए
पाला और शीत के
ग्रास बने भिखमंगे
ये कामग्रस्त, कालग्रस्त
कायर-से भिखमंगे.