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"गर है तो क्यों तेरी बातों में बनावट है/ विनय प्रजापति 'नज़र'" के अवतरणों में अंतर

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'''रचनाकाल : २००३/२०११'''
  
 
गर है तो क्यों तेरी बातों में बनावट है
 
गर है तो क्यों तेरी बातों में बनावट है
किसलिए यह मुझ से झूठी लगावट है
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किसलिए यह मुझसे तेरी झूठी लगावट है
  
ग़ैर की महफ़िल में तेरे अंदाज़े-ख़म
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ग़ैर की महफ़िल में उफ़! तेरे अंदाज़े-ख़म
मुआ जाए उदू सरापा कैसी सजावट है
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मुआ<ref>मृत</ref> है उदू<ref>शत्रु</ref> सरापा कैसी सजावट है
  
सद-अफ़सोस नौ जवाँ हैं मेरे ख़ातिर में
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तेरे दिल में जज़्बों की कैसी मिलावट है
 
तेरे दिल में जज़्बों की कैसी मिलावट है
  
सीमाब है लहू में दौड़ता सच्चा इश्क़
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सीमाब<ref>भारी</ref> है लहू में दौड़ता सच्चा इश्क़
फ़िराक़ से धड़कनों में मेरी गिरावट है
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यूँ फ़िराक़<ref>दूरी</ref> से धड़कनों में मेरी गिरावट है
  
 
फिर वही शाम है और है आँखों में नमी
 
फिर वही शाम है और है आँखों में नमी
नमी क्या है यह तो लहू की तरावट है
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नमी कहाँ है यह तो लहू की तरावट है
  
पढ़ते हैं महफ़िल में किसी ग़ैर के शे’र
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पढ़ते हैं महफ़िल में किसी ग़ैर के अशआर<ref>शे'र का बहुवचन</ref>
बताते हैं कि पुरज़े पे मेरी लिखावट है
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बताते हैं कि पुरज़े<ref>काग़ज़ के टुकड़े</ref> पे मेरी लिखावट है
  
नज़र नाचार है दिल की वादा ख़िलाफ़ी से
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मैं नाचार हूँ दिल की वादा ख़िलाफ़ी से
वरगना इख़लास में कैसी रुकावट है
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वरना अब इख़लास<ref>दोस्ती</ref> में कैसी रुकावट है
  
एक जुनूँ को दबाके सुकूँ पाया है तूने
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एक जुनून दबाकर सुकूँ पाया है तूने
बे-फ़िजूल इन सब बातों की दिखावट है
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फ़िजूल<ref>व्यर्थ</ref> आज ऐसी बातों की दिखावट है
  
वाइज़ की मानी इसलिए यह हश्र हुआ
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हरे हैं घाव शायद काई की जमावट है
 
हरे हैं घाव शायद काई की जमावट है
  
ऐन वक़्त अपनी बात से मुकर गये
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ऐन वक़्त अपनी बातों से मुकर गये तुम
 
क्यों शर्मिन्दगी से आँखों की झुकावट है
 
क्यों शर्मिन्दगी से आँखों की झुकावट है
  
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'''रचनाकाल : 2003
 
 
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20:06, 8 अप्रैल 2011 का अवतरण

रचनाकाल : २००३/२०११

गर है तो क्यों तेरी बातों में बनावट है
किसलिए यह मुझसे तेरी झूठी लगावट है

ग़ैर की महफ़िल में उफ़! तेरे अंदाज़े-ख़म
मुआ<ref>मृत</ref> है उदू<ref>शत्रु</ref> सरापा कैसी सजावट है

सद-अफ़सोस<ref>सौ ग्लानियाँ</ref> क्यों नौ-जवाँ<ref>नयी यौवन</ref> हैं मेरे ख़ातिर<ref>दिल, हृदय</ref> में
तेरे दिल में जज़्बों की कैसी मिलावट है

सीमाब<ref>भारी</ref> है लहू में दौड़ता सच्चा इश्क़
यूँ फ़िराक़<ref>दूरी</ref> से धड़कनों में मेरी गिरावट है

फिर वही शाम है और है आँखों में नमी
नमी कहाँ है यह तो लहू की तरावट है

पढ़ते हैं महफ़िल में किसी ग़ैर के अशआर<ref>शे'र का बहुवचन</ref>
बताते हैं कि पुरज़े<ref>काग़ज़ के टुकड़े</ref> पे मेरी लिखावट है

मैं नाचार हूँ दिल की वादा ख़िलाफ़ी से
वरना अब इख़लास<ref>दोस्ती</ref> में कैसी रुकावट है

एक जुनून दबाकर सुकूँ पाया है तूने
फ़िजूल<ref>व्यर्थ</ref> आज ऐसी बातों की दिखावट है

वाइज़<ref>बुद्धिजीवी</ref> की मान ली इसलिए यह हश्र हुआ
हरे हैं घाव शायद काई की जमावट है

ऐन वक़्त अपनी बातों से मुकर गये तुम
क्यों शर्मिन्दगी से आँखों की झुकावट है

शब्दार्थ
<references/>