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"न रखो वह तस्वीरें हरी जिनसे दिल दुखता हो/ विनय प्रजापति 'नज़र'" के अवतरणों में अंतर
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− | न रखो वह तस्वीरें हरी | + | न रखो वह तस्वीरें हरी जिनसे दिल दुखता हो |
− | कर दो वह | + | कर दो वह ज़मीन बंजर जिनमें घाव उगता हो |
− | क्यों सीने में साँस लेवे दर्द किसी | + | क्यों सीने में साँस लेवे दर्द किसी बे-दर्द का |
− | मिटा दो | + | मिटा दो वो शोल:-ए-दाग़ कि जिससे दिल जलता हो |
− | लुत्फ़ लो उस बात में जिसमें न हो माज़ी की सदा | + | लुत्फ़ लो उस बात में जिसमें न हो माज़ी<ref>बीता समय</ref> की सदा |
− | नोंच दो वह हर ख़ार जो | + | नोंच दो वह हर ख़ार जो उम्मीद पर चुभता हो |
रोशनी चाहिए हर क़दम पे हमें भी तुम्हें भी | रोशनी चाहिए हर क़दम पे हमें भी तुम्हें भी | ||
− | जलाओ | + | जलाओ वो दिये किसलिए जिनसे धुँआ उठता हो |
− | आँच बटोरो ग़म पी जाओ ज़ीस्त को | + | आँच बटोरो ग़म पी जाओ ज़ीस्त<ref>जीवन</ref> को जियो ‘वफ़ा’ |
− | + | जोड़ो उस ख़ाब के टुकड़े जो ख़ुद को छलता हो | |
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''नोट'': इस ग़ज़ल में विनय प्रजापति का दूसरा तख़ल्लुस 'वफ़ा' इस्तेमाल हुआ है। | ''नोट'': इस ग़ज़ल में विनय प्रजापति का दूसरा तख़ल्लुस 'वफ़ा' इस्तेमाल हुआ है। | ||
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14:11, 10 अप्रैल 2011 के समय का अवतरण
लेखन वर्ष: 2003
न रखो वह तस्वीरें हरी जिनसे दिल दुखता हो
कर दो वह ज़मीन बंजर जिनमें घाव उगता हो
क्यों सीने में साँस लेवे दर्द किसी बे-दर्द का
मिटा दो वो शोल:-ए-दाग़ कि जिससे दिल जलता हो
लुत्फ़ लो उस बात में जिसमें न हो माज़ी<ref>बीता समय</ref> की सदा
नोंच दो वह हर ख़ार जो उम्मीद पर चुभता हो
रोशनी चाहिए हर क़दम पे हमें भी तुम्हें भी
जलाओ वो दिये किसलिए जिनसे धुँआ उठता हो
आँच बटोरो ग़म पी जाओ ज़ीस्त<ref>जीवन</ref> को जियो ‘वफ़ा’
जोड़ो उस ख़ाब के टुकड़े जो ख़ुद को छलता हो
शब्दार्थ
<references/>
नोट: इस ग़ज़ल में विनय प्रजापति का दूसरा तख़ल्लुस 'वफ़ा' इस्तेमाल हुआ है।