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"रात कहती थी दिल से आँसू पी / ज़िया फ़तेहाबादी" के अवतरणों में अंतर
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रात कहती थी दिल से आँसू पी | | रात कहती थी दिल से आँसू पी | | ||
यूँ ही उम्मीद में सहर के जी | | यूँ ही उम्मीद में सहर के जी | | ||
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जगमगाए चिराग़ ज़ररों के | जगमगाए चिराग़ ज़ररों के | ||
पड़ गई माँद शमें तारों की | | पड़ गई माँद शमें तारों की | | ||
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गुल ए नरगिस है महव ए आईना | गुल ए नरगिस है महव ए आईना | ||
वाह रे आलम ए दुरूँबीनी | | वाह रे आलम ए दुरूँबीनी | | ||
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वो तो मैं ही था बारहा जिस ने | वो तो मैं ही था बारहा जिस ने | ||
ज़िन्दा रहने को ख़ुदकुशी कर ली | | ज़िन्दा रहने को ख़ुदकुशी कर ली | | ||
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किसे अहसास था असीरी का | किसे अहसास था असीरी का | ||
बन्द खिड़की अगर नहीं खुलती | | बन्द खिड़की अगर नहीं खुलती | | ||
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जल बुझा जो पतँगा उस की ख़बर | जल बुझा जो पतँगा उस की ख़बर | ||
आग की तरह शहर में फैली | | आग की तरह शहर में फैली | | ||
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शेअर कहते रहो " ज़िया " साहिब | शेअर कहते रहो " ज़िया " साहिब | ||
ख़िदमत ए उर्दू और क्या होगी | | ख़िदमत ए उर्दू और क्या होगी | | ||
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20:59, 10 अप्रैल 2011 के समय का अवतरण
रात कहती थी दिल से आँसू पी |
यूँ ही उम्मीद में सहर के जी |
जगमगाए चिराग़ ज़ररों के
पड़ गई माँद शमें तारों की |
गुल ए नरगिस है महव ए आईना
वाह रे आलम ए दुरूँबीनी |
वो तो मैं ही था बारहा जिस ने
ज़िन्दा रहने को ख़ुदकुशी कर ली |
किसे अहसास था असीरी का
बन्द खिड़की अगर नहीं खुलती |
जल बुझा जो पतँगा उस की ख़बर
आग की तरह शहर में फैली |
शेअर कहते रहो " ज़िया " साहिब
ख़िदमत ए उर्दू और क्या होगी |