भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"कब लौटोगी कथा सुनाने / जयकृष्ण राय तुषार" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=जयकृष्ण राय तुषार }} {{KKCatNavgeet}} <poem> कब लौटोगी कथा सुना…)
 
(कोई अंतर नहीं)

23:37, 10 अप्रैल 2011 के समय का अवतरण

कब लौटोगी
कथा सुनाने
ओ सिंदूरी शाम |

रीत गयी है
गन्ध संदली
शोर हवाओं में ,
चुटकी भर
चांदनी नहीं है
रात दिशाओं में ,

टूट रहे
आदमकद शीशे
चीख और कोहराम |

माथे बिंदिया
पांव महावर
उबटन अंग लगाने ,
जूडे चम्पक
फूल गूंथने
क्वांरी मांग सजाने ,

हाथों में
जादुई छड़ी ले
आना मेरे धाम |

बंद हुई
खिड़कियाँ ,झरोखे
तुम्हें खोलना है ,
बिजली के
तारों पर
नंगे पांव डोलना है ,

प्यासे होठों पर
लिखना है
बौछारों का नाम |