"सवेरा / ज़िया फतेहाबादी" के अवतरणों में अंतर
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=ज़िया फतेहाबादी |संग्रह= }} {{KKCatNazm}} <poem> मुझे लेनी ह…) |
|||
पंक्ति 7: | पंक्ति 7: | ||
<poem> | <poem> | ||
मुझे लेनी है तूफ़ानों से टक्कर ऐ दिल-ए वहशी | मुझे लेनी है तूफ़ानों से टक्कर ऐ दिल-ए वहशी | ||
+ | |||
कि अब आसूदगी साहिल की वजह ए सरगीरानी है | कि अब आसूदगी साहिल की वजह ए सरगीरानी है | ||
कि मैंने अब जुनून ए कशमकश की क़द्र जानी है | कि मैंने अब जुनून ए कशमकश की क़द्र जानी है | ||
बहुत चलता रहा दामन बचा कर ऐ दिल-ए वहशी | बहुत चलता रहा दामन बचा कर ऐ दिल-ए वहशी | ||
+ | |||
मय-ओ मीना-ओ साक़ी का ख़याल ए जाँफ़िज़ा कब तक | मय-ओ मीना-ओ साक़ी का ख़याल ए जाँफ़िज़ा कब तक | ||
न लेगा तू सहारा परतो ए शमशीर का कब तक | न लेगा तू सहारा परतो ए शमशीर का कब तक | ||
न तू आएगा कब तक रास्ते पर ऐ दिल-ए वहशी | न तू आएगा कब तक रास्ते पर ऐ दिल-ए वहशी | ||
+ | |||
किसी की रेशमी आँचल में कब तक मुस्कराएगा | किसी की रेशमी आँचल में कब तक मुस्कराएगा | ||
जवानी की हसीं आग़ोश में तस्कीन पाएगा | जवानी की हसीं आग़ोश में तस्कीन पाएगा | ||
मिटा जाता है झूटी राहतों पर ऐ दिल-ए वहशी | मिटा जाता है झूटी राहतों पर ऐ दिल-ए वहशी | ||
+ | |||
ये मज़हब आदमी को आदमी से जो लड़ाता है | ये मज़हब आदमी को आदमी से जो लड़ाता है | ||
ख़ुदा के नाम पर जो शैतनत को ख़ुद जगाता है | ख़ुदा के नाम पर जो शैतनत को ख़ुद जगाता है | ||
वो मज़हब इब्न-ए आदम का है रहबर ऐ दिल-ए वहशी | वो मज़हब इब्न-ए आदम का है रहबर ऐ दिल-ए वहशी | ||
+ | |||
मुझे इंसानियत की मौत पर आंसू बहाने हैं | मुझे इंसानियत की मौत पर आंसू बहाने हैं | ||
यतीमों और बेवाओं के अफ़साने सुनाने हैं | यतीमों और बेवाओं के अफ़साने सुनाने हैं | ||
जो घरवाले कभी थे अब हैं बेघर ऐ दिल-ए वहशी | जो घरवाले कभी थे अब हैं बेघर ऐ दिल-ए वहशी | ||
+ | |||
क़नूतियत तेरी रूहानियत का नक्श ए पस्ती है | क़नूतियत तेरी रूहानियत का नक्श ए पस्ती है | ||
ईलाही किस क़दर तखरीब परवर तेरी बस्ती है | ईलाही किस क़दर तखरीब परवर तेरी बस्ती है | ||
जो अब तक बंद थे वो खोल दे दर ऐ दिल-ए वहशी | जो अब तक बंद थे वो खोल दे दर ऐ दिल-ए वहशी | ||
+ | |||
ज़माना तुझ से आगे और आगे बढ़ता जाता है | ज़माना तुझ से आगे और आगे बढ़ता जाता है | ||
तेरी खुशफहमियों पर अज़म तेरा मुस्कराता है | तेरी खुशफहमियों पर अज़म तेरा मुस्कराता है | ||
कि पानी आ गया है सर के ऊपर ऐ दिल ए वहशी | कि पानी आ गया है सर के ऊपर ऐ दिल ए वहशी | ||
+ | |||
लूँढा दे खुम, प्याले तोड़ दे, साक़ी को रुखसत कर | लूँढा दे खुम, प्याले तोड़ दे, साक़ी को रुखसत कर | ||
शुरू-ए दौर-ए नौ है, तेग उठा, परचम से उल्फत कर | शुरू-ए दौर-ए नौ है, तेग उठा, परचम से उल्फत कर | ||
न अपने माज़ी-ए मज़लूम से डर ऐ दिल-ए वहशी | न अपने माज़ी-ए मज़लूम से डर ऐ दिल-ए वहशी | ||
+ | |||
गई शब् और हंगाम-ए तुल्लू-ए सुबह आ पहुँचा | गई शब् और हंगाम-ए तुल्लू-ए सुबह आ पहुँचा | ||
सफ़ीना ज़ीस्त का मंझधार में ऐ नाख़ुदा पहुँचा | सफ़ीना ज़ीस्त का मंझधार में ऐ नाख़ुदा पहुँचा | ||
बदलना है मुझे तेरा मुक़द्दर ऐ दिल-ए वहशी | बदलना है मुझे तेरा मुक़द्दर ऐ दिल-ए वहशी | ||
</poem> | </poem> |
08:51, 11 अप्रैल 2011 के समय का अवतरण
मुझे लेनी है तूफ़ानों से टक्कर ऐ दिल-ए वहशी
कि अब आसूदगी साहिल की वजह ए सरगीरानी है
कि मैंने अब जुनून ए कशमकश की क़द्र जानी है
बहुत चलता रहा दामन बचा कर ऐ दिल-ए वहशी
मय-ओ मीना-ओ साक़ी का ख़याल ए जाँफ़िज़ा कब तक
न लेगा तू सहारा परतो ए शमशीर का कब तक
न तू आएगा कब तक रास्ते पर ऐ दिल-ए वहशी
किसी की रेशमी आँचल में कब तक मुस्कराएगा
जवानी की हसीं आग़ोश में तस्कीन पाएगा
मिटा जाता है झूटी राहतों पर ऐ दिल-ए वहशी
ये मज़हब आदमी को आदमी से जो लड़ाता है
ख़ुदा के नाम पर जो शैतनत को ख़ुद जगाता है
वो मज़हब इब्न-ए आदम का है रहबर ऐ दिल-ए वहशी
मुझे इंसानियत की मौत पर आंसू बहाने हैं
यतीमों और बेवाओं के अफ़साने सुनाने हैं
जो घरवाले कभी थे अब हैं बेघर ऐ दिल-ए वहशी
क़नूतियत तेरी रूहानियत का नक्श ए पस्ती है
ईलाही किस क़दर तखरीब परवर तेरी बस्ती है
जो अब तक बंद थे वो खोल दे दर ऐ दिल-ए वहशी
ज़माना तुझ से आगे और आगे बढ़ता जाता है
तेरी खुशफहमियों पर अज़म तेरा मुस्कराता है
कि पानी आ गया है सर के ऊपर ऐ दिल ए वहशी
लूँढा दे खुम, प्याले तोड़ दे, साक़ी को रुखसत कर
शुरू-ए दौर-ए नौ है, तेग उठा, परचम से उल्फत कर
न अपने माज़ी-ए मज़लूम से डर ऐ दिल-ए वहशी
गई शब् और हंगाम-ए तुल्लू-ए सुबह आ पहुँचा
सफ़ीना ज़ीस्त का मंझधार में ऐ नाख़ुदा पहुँचा
बदलना है मुझे तेरा मुक़द्दर ऐ दिल-ए वहशी