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'''पद 33 से 44 34 तक'''
( रानी।9।।33)समरथ सुअन समीरके, रघुबीर-पियारे। मोपर कीबी तोहि जो करि लेहि भिया रे।1।  तेरी महिमा ते चलैं चिंचनी-चिया रे। अँधियारो मेरी बार क्यों , त्रिभुवन-उजियारे।2।  केहि करनी जन जानिकै सनमान किया रे। केहि अघ औगुन आपने कर डारि दिया रे।3।  खाई खोंची माँगि मैं तेरो नाम लिया रे। तेरे बल , बलि, आजु लौं जग जागि जिया रे।4।  जो तोसों होतों फिरों मेरो हेतु हिया रे। तौ क्यों बदन देखावतो कहि बचन इयारे।5। तोसों ग्यान-निधान को सरबग्य बिया रे। हौं समुझत साईं-द्रोहकी गति छार छिया रे।6।  तेरे स्वामी राम से, स्वामिनी सिया रे। तहँ तुलसीके कौनको काको तकिया रे।7।  (34),अति आरत , अति स्वारथी, अति दीन-दुखारी। इनको बिलगु न मानिये, बोलहिं न बिचारी।1।  लोक-रीति देखी सुनी, व्याकुल नर-नारी। अति बरषे अनबरषेहूँ, देहिं दैवहिं गारी।2।  नाकहिं आये नाथसों, साँसति भय भारी। कहि आयो, कीबी छमा, निज ओर निहारी।3।  समै साँकरे सुमिरिये, समरथ हितकारी। सो सब बिधि ऊबर करै, अपराध बिसारी।4।  बिगरी सेवककी सदा, साहेबहिं सुधारी। तुलसी पर तेरी कृपा, निरूपाधि निरारी।5।
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