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एक दिन की बात / अनिल जनविजय

38 bytes added, 05:58, 15 अप्रैल 2011
{{KKRachna
|रचनाकार=अनिल जनविजय
|संग्रह=राम जी भला करें/ अनिल जनविजय
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उस दिन तू मुझको लगी थी
 
अतिमोहक, अभिरामा, अलबेली
 
बच्चों के संग झील में थी तू
 
कर रही थी जलकेली
 
मुझे तैरना नहीं आता था
 
इसलिए जल मुझे नहीं भाता था
 
मैं खड़ा किनारे गुन रहा था
 
तेरे शरीर की आभा
 
और मन ही मन बुन रहा था
 
एक नई कविता का धागा
 
तभी लगा अचानक मुझे
 
तू डूब रही है
 
मैं तेज़ी-से तुझ तक भागा
 
मन मेरा बेहद घबराया
 
दिखी नहीं जब तेरी छाया
 
तब कपड़ों में ही सीधे
 
मैं जल में कूद पड़ा था
 
तुझे बचाने की कोशिश में
 
ख़ुद मैं डूब रहा था
 
अब तू घबराई
 
पास मेरे आई
 
आकर मुझे बचाया
 
फिर मैं हँसता था, तू हँसती थी
 
तूने मुझे बताया--
"नहीं-नहीं मैं डूबी कहाँ थी
 
कर रही थी तुझसे अठखेली"
 
फिर शरमाई तू ऎसे मुझसे
 
जैसे वधू हो नई-नवेली
 (2003 में रचित) </poem>
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