भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मन की चाह / अनिल जनविजय

35 bytes added, 06:03, 15 अप्रैल 2011
|संग्रह=राम जी भला करें / अनिल जनविजय
}}
{{KKAnthologyLove}}{{KKCatKavita‎}}<poem>
तू मेरी होगी
 
मन में मेरे चाह यही थी
 
तू मिलेगी मुझको तेरा प्यार मिलेगा
 
विरहाकुल मन को मेरे
 
तेरे उर का सार का मिलेगा
 
यही सोच मैं कलरव करता
 
गाता मीठे गान
 
पर बदल रही है भीतर से तू
 
न था यह अनुमान
 
सोच न पाया व्यथा मिलेगी
 
दारुण हाहाकार मिलेगा
 
तू मेरी प्रियतमा रूपवंता
 
तुझसे नीरस संसार मिलेगा
 
अवचेतन में स्तब्ध शून्य था
 
बची जरा भी दाह नहीं थी
 
दृष्टि धुँधली हो गई मेरी
 
शेष अब कोई राह नहीं थी
 
(2002)
</poem>
Delete, Mover, Protect, Reupload, Uploader
54,423
edits