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कुछ तो है हमारे बीच | कुछ तो है हमारे बीच |
12:32, 15 अप्रैल 2011 के समय का अवतरण
कुछ तो है हमारे बीच
कि हमारी निगाहें मिलती हैं
और दिशाओं में आग लग जाती है
कुछ तो है
कि हमारे संवादों पर
निगाह रखते हैं रंगे लोग
और समवेत स्वर में
करने लगते हैं विरोध
कुछ तो है कि रूखों पर पोती गयी कालिख
जलकर राख हो जाती है
कुछ तो है हमारे मध्य
कि हर बार निकल आते हैं हम
निर्दोष, अवध्य
कुछ तो है
जिसे गगन में घटता-बढता चाँद
फैलाता-समेटता है
जिसे तारे गुनगुनाते हैं मद्धिम लय में
कुछ तो है कि जिसकी आहट पा
झरने लगते हैं हरसिंगार
कुछ है कि मासूमियत को
हम पे आता है प्यार....