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− | कि अपना खुदा होना - .............अरूणा राय
| + | {{KKGlobal}} |
− | -------------------------------------------------
| + | {{KKRachna |
− | गुलामों की
| + | |रचनाकार=अरुणा राय |
− | जुबान नही होती
| + | }} |
− | सपने नही होते
| + | {{KKAnthologyLove}} |
− | इश्क तो दूर
| + | {{KKCatKavita}} |
− | जीने की
| + | <poem> |
− | बात नही होती
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− | मैं कैसे भूल जाऊं
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− | अपनी गुलामी
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− | कि अपना खुदा होना
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− | कभी भूलता नहीं तू...
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− | | + | |
− | | + | |
− | मेरे सपनों का राजकुमार .............अरूणा राय
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− | -------------------------------------------------
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− | मेरे सपनों का
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− | राजकुमार
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− | बनना चाहता है वह
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− | पर उसके पास
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− | ना तो
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− | भावनाओं को
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− | अपनी टापों से रौंदने वाले
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− | घोड़े हैं
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− | ना ही
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− | वह तलवार है
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− | जिसे वह मेरे
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− | जिगर के पार
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− | उतार सके।
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− | ________________________________________
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− | अभी तूने वह कविता कहां लिखी है जानेमन -
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− | { कुमार मुकुल के लिए } - अरूणा राय
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− | ...............................................................
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− | अभी तूने वह कविता कहां लिखी है जानेमन
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− | मैंने कहां पढी है वह कविता
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− | अभी तो तूने मेरी आंखें लिखीं हैं, होंठ लिखे हैं
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− | कंधे लिखे हैं उठान लिए
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− | और मेरी सुरीली आवाज लिखी है
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− | | + | |
− | पर मेरी रूह फना करते
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− | उस शोर की बाबत कहां लिखा कुछ तूने
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− | जो मेरे सरकारी जिरह-बख्तर के बावजूद
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− | मुझे अंधेरे बंद कमरे में
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− | एक झूठी तस्सलीबख्श नींद में गर्क रखती है
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− | अभी तो बस सुरमयी आंखें लिखीं हैं तूने
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− | उनमें थक्कों में जमते दिन ब दिन
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− | जिबह किए जाते मेरे खाबों का रक्त
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− | कहां लिखा है तूने
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− | अभी तो बस तारीफ की है
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− | मेरे तुकों की लय पर प्रकट किया है विस्मय
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− | पर वह क्षय कहां लिखा है
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− | जो मेरी निगाहों से उठती स्वर लहरियों को
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− | बारहा जज्ब किए जा रहा है
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− | अभी तो बस कमनीयता लिखी है तूने मेरी
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− | नाजुकी लिखी है लबों की
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− | वह बांकपन कहां लिखा है तूने
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− | जिसने हजारों को पीछे छोड़ा है
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− | और फिर भी जिसके नाखून और सींग
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− | नहीं उगे हैं
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− | अभी तो बस
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− | रंगीन परदों, तकिए के गिलाफ और क्रोसिए की
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− | कढाई का जिक्र किया है तूने
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− | मेरे जीवन की लड़ाई और चढाई का जिक्र
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− | तो बाकी है अभी...
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− | | + | |
− | अभी तूने वह कविता लिखनी है जानेमन ...
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− | प्यार में ... - अरूणा राय
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− | ...............................................................
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− | | + | |
| प्यार में | | प्यार में |
| हम क्यों लड़ते हैं इतना | | हम क्यों लड़ते हैं इतना |
− | बच्चों सा | + | बच्चों-सा |
| जबकि बचपना | | जबकि बचपना |
| छोड आए कितना पीछे | | छोड आए कितना पीछे |
| | | |
| अक्सर मैं | | अक्सर मैं |
− | छेड़ती हूं उसे | + | छेड़ती हूँ उसे |
− | जाए बतिआए अपनी लालपरी से | + | कि जाए बतियाए अपनी लालपरी से |
− | और झल्लाता सा | + | और झल्लाता-सा |
− | चीखता है वह - कपार ...
| + | चीख़ता है वह-- कपार... |
− | फिर पूछती हूं मैं | + | फिर पूछती हूँ मैं |
− | यह कपार क्या हुआ जानेमन | + | यह कपार क्या हुआ, जानेमन |
− | तो हंसता है वह - | + | तो हँसता है वह- |
− | कुछ नहीं ... मेरा सर ... | + | कुछ नहीं... मेरा सर... |
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− | फिर बोलता है वह - | + | फिर बोलता है वह-- |
| और तुम्हारे जो इतने चंपू हैं और | | और तुम्हारे जो इतने चंपू हैं और |
− | तुम्हारा वह दंतचिपोर ... | + | तुम्हारा वह दंतचिपोर... |
− | ओह शिट ... यह चिपोर क्या हुआ ... | + | ओह शिट... यह चिपोर क्या हुआ... |
− | नहीं मेरा मतलब | + | नहीं, मेरा मतलब |
− | हंसमुख था
| + | हँसमुख था |
− | जो मुंह लटकाए पड़ा रहता है | + | जो मुँह लटकाए पड़ा रहता है |
| दर पर तेरे... | | दर पर तेरे... |
| | | |
| हा हा हा | | हा हा हा |
− | छोडि़ए बेचारे को
| + | छोड़िए बेचारे को |
| कितना सीधा है वह | | कितना सीधा है वह |
| आपकी तरह तंग तो नहीं करता | | आपकी तरह तंग तो नहीं करता |
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| और आपकी वह सहेली | | और आपकी वह सहेली |
| कैसी है | | कैसी है |
− | पूछता है वह ... कौन | + | पूछता है वह... कौन |
| अरे वही जो हमेशा अपना झखुरा | | अरे वही जो हमेशा अपना झखुरा |
| फैलाए रहती है | | फैलाए रहती है |
− | व्हाट झखुरा ... झल्लाता है वह | + | व्हाट झखुरा... झल्लाता है वह |
| अरे वही | | अरे वही |
− | बाले तेरे बालजाल में कैसे उलझा दूं लोचन ... वाला | + | बाले तेरे बालजाल में कैसे उलझा दूँ लोचन... वाला |
| मतलब जुल्फों वाली आपकी सुनयना | | मतलब जुल्फों वाली आपकी सुनयना |
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| अरे | | अरे |
| अच्छी तो है वह कितनी | | अच्छी तो है वह कितनी |
− | उसी दिन बेले की कलियां सजा रखी थीं | + | उसी दिन बेले की कलियाँ सजा रखी थीं |
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− | तो तो उसी के पास क्यों नहीं चले जाते | + | तो... तो उसी के पास क्यों नहीं चले जाते |
− | | + | अरे! |
− | अरे | + | वहीं से तो चला आ रहा हूँ... हा हा हा |
− | वहीं से तो चला आ रहा हूं ... हा हा हा | + | देखो मेरी आँखों में उसकी ख़ुशबू |
− | देखो मेरी आंखों में उसकी खुश्बू | + | |
| दिख नहीं रही... | | दिख नहीं रही... |
| | | |
− | झपटती हूं मैं | + | झपटती हूँ मैं |
| और वार बचाता वह | | और वार बचाता वह |
| संभाल लेता है मुझे | | संभाल लेता है मुझे |
| और मेरा सिर सूंघता | | और मेरा सिर सूंघता |
− | कहता है - ऐसी ही तो खुश्बू थी उसके बालों की भी | + | कहता है-- ऐसी ही तो ख़ुशबू थी उसके बालों की भी |
− | ... हा हा हा ... | + | ... हा हा हा... |
− | | + | </poem> |
− | कैसा आततायी है रे तू ... - अरूणा राय
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− | ...............................................................
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− | | + | |
− | मेरी
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− | सारी दिशाओं को
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− | अपने मृदु हास्य में बांध
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− | कहां गुम हो गया है खुद
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− | | + | |
− | कि
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− | कैसा आततायी है रे तू
| + | |
− | | + | |
− | तुझसे अच्छा तो
| + | |
− | सितारा है वह
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− | दूर है
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− | पर हिलाए जा रहा
| + | |
− | अपनी रोशन हथेली
| + | |
− | | + | |
− | जो नहीं है रे तू
| + | |
− | तो क्यों यह तेरी
| + | |
− | अनुपस्थिति
| + | |
− | ऐसी बेसंभाल है
| + | |
− | | + | |
− | तू तो कहता है
| + | |
− | कि मेरा प्यार है तू
| + | |
− | तो फिर यह दर्द कैसा
| + | |
− | दुश्वार है ...
| + | |
− | | + | |
− | कहीं यही तो नहीं है प्यार ... - अरूणा राय
| + | |
− | ...............................................................
| + | |
− | | + | |
− | सोचती हूं अगली बार
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− | उसे देख लूंगी ठीक से
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− | निरख-परख लूंगी
| + | |
− | जान लूंगी
| + | |
− | पूरी तरह समझ लूंगी
| + | |
− | | + | |
− | पर
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− | सामने आने पर
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− | निकल जाता है वक्त
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− | देखते-देखते
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− | कि देख ही नहीं पाती उसे पूरा
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− | एक निगाह
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− | एक स्वर
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− | या आध इंच मुस्कान में ही
| + | |
− | उलझकर रह जाती हूं
| + | |
− | और
| + | |
− | वह भी
| + | |
− | किसी बहाने लेता है हाथ हाथों में
| + | |
− | और पूछता है
| + | |
− | क्या इसी अंगूठे में चोट है...
| + | |
− | कहां है चोट ... ओह ... यहां
| + | |
− | अरे
| + | |
− | तुम्हारी मस्तिष्क रेखा तो सीधी
| + | |
− | चली जाती है आर-पार
| + | |
− | इसीलिए करती हो इतनी मनमानी
| + | |
− | खा जाती हो सिर
| + | |
− | और फिर ... वक्त आ जाता है
| + | |
− | चलने का
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− | कि गर्मजोशी से हाथ मिलाता है वह
| + | |
− | भूलकर मेरा चोटिल अंगूठा
| + | |
− | ओह...
| + | |
− | उसकी आंखों की चमक में
| + | |
− | दब जाता है मेरा दर्द
| + | |
− | और सोचती रह जाती हूं मैं
| + | |
− | कि यह जो दबा रह जाता है दर्द
| + | |
− | जो बचा रह जाता है
| + | |
− | जानना
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− | देखना उसे जीभर कर
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− | कहीं यही तो नहीं है प्यार ...
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− | | + | |
− | एक खालीपन है ... - अरूणा राय
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− | ...............................................................
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− | | + | |
− | एक खालीपन है
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− | जो परेशान करता है
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− | रात दिन
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− | | + | |
− | यह
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− | उसके होने की खुशी से रौशन
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− | खालीपन नहीं है
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− | जिसमें मैं हवा सी हल्की हो
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− | भागती-दौड़ती
| + | |
− | उसे भरती रह सकती हूं
| + | |
− | | + | |
− | यह
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− | उसके ना होने से पैदा
| + | |
− | एक ठोस और अंधेरा खालीपन है
| + | |
− | जो अपने भीतर
| + | |
− | धंसने नहीं देता मुझे
| + | |
− | | + | |
− | इस खालीपन को
| + | |
− | अपनी हंसी से
| + | |
− | गुंजा नहीं सकती मैं
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− | | + | |
− | इसमें तो
| + | |
− | मेरी रूलाई की भी
| + | |
− | रसाई नहीं
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− | | + | |
− | यह
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− | ना हंसने देता है
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− | ना रोने
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− | बस
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− | एक अनंत उदासी में
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− | गर्क होने को
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− | छोड़ जाता है
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− | तन्हा ...
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− | | + | |
− | | + | |
− | | + | |
− | | + | |
− | | + | |
− | कैसी आग है यह ... - अरूणा राय
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− | ...............................................................
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− | | + | |
− | ओह क्या है यह
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− | मेरे पहलू में
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− | यह कैसी आग
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− | जलती रहती है हर बखत
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− | जिसमें मेरा हृदय
| + | |
− | तपता रहता है
| + | |
− | | + | |
− | वह अग्नि है
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− | तो राख क्यों नहीं कर जाती
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− | मेरा हृदय
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− | | + | |
− | ना स्वप्न है
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− | ना जागरण है
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− | कैसा व्यक्तित्वांतरण है यह
| + | |
− | कि अपनी ही शक्ल
| + | |
− | अब बेगानी लग रही है
| + | |
− | कि अब तो बस
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− | वही चेहरा है
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− | अग्निशिखा में दिपता सा
| + | |
− | निर्धूम
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− | | + | |
− | जाने यह कैसी आग है
| + | |
− | यह कौन जगता जा रहा है
| + | |
− | मेरे अंतर में
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− | कैसी पुकार है यह
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− | मेरे अंतर को व्यथित करती ...
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− | | + | |
− | | + | |
− | | + | |
− | बीच में थी एक लट ...- अरूणा राय
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− | ...............................................................
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− | | + | |
− | एक
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− | दुधिया चेहरा
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− | एक
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− | तांबई
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− | | + | |
− | बीच में थी
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− | | + | |
− | एक लट
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− | काली सी
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− | | + | |
− | दोलती ...
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− | | + | |
− | | + | |
− | | + | |
− | आखिर हम आदमी थे ...- अरूणा राय
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− | ...............................................................
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− | | + | |
− | इक्कीसवीं सदी के
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− | आरंभ में भी
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− | प्यार था
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− | वैसा ही
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− | आदिम
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− | शबरी के जमाने सा
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− | तन्मयता
| + | |
− | वैसी ही थी
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− | मद्धिम
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− | था स्पर्श
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− | गुनगुना...
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− | | + | |
− | आखिर
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− | हम आदमी थे
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− | ... इक्कीसवीं सदी में भी
| + | |
− | | + | |
− | | + | |
− | | + | |
− | प्रतीक्षा में ... - अरूणा राय
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− | ...............................................................
| + | |
− | | + | |
− | आंसुओं से मेरे
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− | कब-तक
| + | |
− | धोते रहोगे
| + | |
− | चेहरा
| + | |
− | मेरी आंखों की चमक में
| + | |
− | नहाओ कभी
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− | | + | |
− | देखो
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− | प्रतीक्षा में वे
| + | |
− | कैसी
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− | भास्वर हो उठी हैं ...
| + | |
− | | + | |
− | आज तूने ... - अरूणा राय
| + | |
− | ...............................................................
| + | |
− | | + | |
− | आज तूने स्वप्न की शुरूआत कर दी
| + | |
− | रात ही थी रात तूने प्रात कर दी
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− | निपट खाली था यह अपना हृदय भी
| + | |
− | तूने तो बस चंपई सौगात कर दी
| + | |
− | आज...
| + | |
− | स्वप्न था या के सचमुच था वो तू ही
| + | |
− | बेले गेंदा चमेली चंपा सोनजूही
| + | |
− | छलकते खुशबुओं से नेत्र थे वो क्या लबालब
| + | |
− | तूने तो इस मरूथल में बरसात कर दी
| + | |
− | आज...
| + | |
− | तस्वीर में बैठा है तू तो अब भी सम्मुख
| + | |
− | हथेली पर टिकाए ठुड्डियां कुछ सोचता सा
| + | |
− | लीले डालती हैं इन निगाहेां की भंवर तो
| + | |
− | किस अनोखे अनमने से दर्द की यह बात कर दी
| + | |
− | आज...
| + | |
− | | + | |
− | एक अकेले से ... - अरूणा राय
| + | |
− | ...............................................................
| + | |
− | | + | |
− | चलते - चलते
| + | |
− | हाथ बढ़ाए हमने
| + | |
− | तो वो उलझे
| + | |
− | और छूट गए
| + | |
− | और छोड़ गए उलझन
| + | |
− | | + | |
− | अब
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− | एक अकेले से
| + | |
− | वह सुलझे कैसे ...
| + | |
− | | + | |
− | अकारण प्यार से ... - अरूणा राय
| + | |
− | ...............................................................
| + | |
− | | + | |
− | स्वप्न में
| + | |
− | मन के सादे कागज पर
| + | |
− | एक रात किसी ने
| + | |
− | ईशारों से लिख दिया अ....
| + | |
− | और अकारण
| + | |
− | शुरू हो गया वह
| + | |
− | और एक अनमनापन बना रहने लगा
| + | |
− | फिर उस अनमनेपन को दूर करने को
| + | |
− | एक दिन आई खुशी
| + | |
− | और आजू-बाजू कई कारण
| + | |
− | खडें कर दिए
| + | |
− | कारणों ने इस अनमनेपन को पांव दे दिए
| + | |
− | और वह लगा डग भरने , चलने और
| + | |
− | और अखीर में उड़ने
| + | |
− | अब वह उड़ता चला जाता वहां कहीं भी
| + | |
− | जिधर का ईशारा करता अ...
| + | |
− | और पाता कि यह दुनिया तो
| + | |
− | इसी अकारण प्यार से चल रही है
| + | |
− | और उसे पहली बार प्यारी लगी यह
| + | |
− | कि उसे पता ही नही था इसकी बाबत
| + | |
− | जबकि तमाम उम्र वह
| + | |
− | इसी के बारे में कलम घिसता रहा था
| + | |
− | | + | |
− | यह सोच-सोच कर उसे
| + | |
− | खुद पर हंसी आई
| + | |
− | और अपनी बोली में उसने
| + | |
− | खुद को ही कहा - भक... बुद्धू...
| + | |
− | भक...
| + | |
− | अ ने दुहराया उसे
| + | |
− | और बिहंसता जाकर झूल गया
| + | |
− | उसके कंधों से
| + | |
− | अब दोनों ने मिलकर कहा - भक...
| + | |
− | और ठठाकर हंस पड़े
| + | |
− | भक...
| + | |
− | दूर दो सितारे चमक उठे...
| + | |
− | | + | |
− | | + | |
− | | + | |
− | आंखों के तरल जल का आईना ... - अरूणा राय
| + | |
− | ...............................................................
| + | |
− | | + | |
− | मेरा यह आईना
| + | |
− | शीशे का नहीं
| + | |
− | जल का है
| + | |
− | | + | |
− | यह टूट कर
| + | |
− | बिखरता नहीं
| + | |
− | | + | |
− | बहुत संवेदनशील है यह
| + | |
− | तुम्हारे कांपते ही
| + | |
− | तुम्हारी छवि को
| + | |
− | हजार टुकडों में
| + | |
− | बिखेर देगा यह
| + | |
− | | + | |
− | इसलिए
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− | इसके मुकाबिल होओ
| + | |
− | तो थोडा संभलकर
| + | |
− | | + | |
− | और हां
| + | |
− | इसमें अपना अक्श
| + | |
− | देखने के लिए
| + | |
− | थोडा झुकना पडता है
| + | |
− | यह आंखों के तरल
| + | |
− | जल का आईना है
| + | |
− | | + | |
− | | + | |
− | | + | |
− | उसकी त्रासदियां... - अरूणा राय
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− | ...............................................................
| + | |
− | | + | |
− | किसी एक पल
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− | शुरू होते हो तुम
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− | | + | |
− | निगाह
| + | |
− | या ध्वनि
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− | या एक शब्द से
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− | | + | |
− | अगले पल
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− | | + | |
− | अंत हो जाता है उसका
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− | | + | |
− | पर
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− | उसकी त्रासदियां
| + | |
− | | + | |
− | अनंत होती जाती हैं...
| + | |
− | | + | |
− | सचमुच की यातना ... - अरूणा राय
| + | |
− | ...............................................................
| + | |
− | | + | |
− | झूठी राहत
| + | |
− | ढूंढ रहा था मैं
| + | |
− | पर तूने दे डाली
| + | |
− | सचमुच की यातना ...
| + | |
− | | + | |
− | खुशियों से
| + | |
− | जो ढंक रहे थे मुझे
| + | |
− | क्या कम था
| + | |
− | | + | |
− | क्या फितूर था
| + | |
− | | + | |
− | कि जिससे शीतलता पाई
| + | |
− | चाह रही थी
| + | |
− | कि वही
| + | |
− | जलाए मुझे ...
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− | | + | |
− | चुप हो तुम ... - अरूणा राय
| + | |
− | ...............................................................
| + | |
− | | + | |
− | चुप हो तुम
| + | |
− | तो
| + | |
− | हवाएं चुप हैं
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− | | + | |
− | खामोशी की चील
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− | काटती है
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− | चक्कर
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− | दाएं... बाएं
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− | | + | |
− | लगाती हूं आवाज...
| + | |
− | | + | |
− | पर
| + | |
− | फर्क नहीं पड़ता
| + | |
− | | + | |
− | बदहवासी
| + | |
− | | + | |
− | पैठती जाती है
| + | |
− | भीतर...
| + | |
− | | + | |
− | कि अभाव से उसके ...- अरूणा राय
| + | |
− | ...............................................................
| + | |
− | | + | |
− | माउस को
| + | |
− | ... पर ले जाकर
| + | |
− | क्लिक करती हूं .....
| + | |
− | | + | |
− | याहू मैसेंजर का बक्सा
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− | कौंधता हुआ आ जाता है उसी तरह
| + | |
− | पर जो नहीं आते
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− | वे हैं शब्द
| + | |
− | हाय या हाई या कहां हैं आप ...
| + | |
− | के जवाब में कौंधते
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− | चले आते थे जो
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− | | + | |
− | मतलब जो रोज आती थी परदे पर
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− | वह छाया नहीं थी मात्र
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− | जैसा कि सोचती थी मैं
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− | कभी-कभी
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− | ठीक है कि एक परदा रहता था बीच में
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− | पर परदे के पीछे की दुनिया
| + | |
− | उतनी अबूझ नहीं थी कभी
| + | |
− | जैसी कि लग रही है
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− | अब इस समय
| + | |
− | जब कि वह नहीं है वहां
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− | परदे के उस पार
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− | | + | |
− | एक शून्य को खटखटाता
| + | |
− | चला जा रहा
| + | |
− | पर शून्य है कि
| + | |
− | पानी की लकीर तरह
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− | माउस क्लिक करने की क्रिया को
| + | |
− | लील जा रहा है
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− | | + | |
− | ओह क्या करूं मैं
| + | |
− | कि एक खालीपन ने भर दिया है मुझे
| + | |
− | इस तरह
| + | |
− | कि खाली नहीं कर पा रही खुद को
| + | |
− | विचार से
| + | |
− | कि भाव से
| + | |
− | कि अभाव से
| + | |
− | उसके...
| + | |
− | | + | |
− | प्रेमी ... - अरूणा राय
| + | |
− | ...............................................................
| + | |
− | | + | |
− | प्रेमी
| + | |
− | गौरैये का वो जोड़ा है
| + | |
− | जो समाज के रौशनदान में
| + | |
− | उस समय घोसला बनाना चाहते हैं
| + | |
− | जब हवा सबसे तेज बहती हो
| + | |
− | और समाज को प्रेम पर
| + | |
− | उतना एतराज नहीं होता
| + | |
− | जितना कि घर में ही
| + | |
− | एक और घर तलाशने की उनकी जिद पर
| + | |
− | शुरू में
| + | |
− | खिड़की और दरवाजों से उनका आना-जाना
| + | |
− | उन्हें भी भाता है
| + | |
− | भला लगता है चांय-चू करते
| + | |
− | घर भर में घमाचौकड़ी करना
| + | |
− | पर जब उनके पत्थर हो चुके फर्श पर
| + | |
− | पुआल की नर्म सूखी डांट और पत्तियां गिरती हैं
| + | |
− | एतराज
| + | |
− | उनके कानों में फुसफुसाता है
| + | |
− | फिर वे इंतजार करते हैं
| + | |
− | तेज हवा
| + | |
− | बारिश
| + | |
− | और लू का
| + | |
− | और देखते हैं
| + | |
− | कि कब तक ये चूजे
| + | |
− | लड़ते हैं मौसम से
| + | |
− | बावजूद इसके
| + | |
− | जब बन ही जाता है घोंसला
| + | |
− | तब वे जुटाते हैं
| + | |
− | सारा साजो-सामान
| + | |
− | चौंकी लगाते हैं पहले
| + | |
− | फिर उस पर स्टूल
| + | |
− | पहुंचने को रोशनदान तक
| + | |
− | और साफ करते हैं
| + | |
− | कचरा प्रेम का
| + | |
− | और फैसला लेते हैं
| + | |
− | कि घरों में रौशनदान
| + | |
− | नहीं होने चाहिए
| + | |
− | नहीं दिखने चाहिए
| + | |
− | ताखे
| + | |
− | छज्जे
| + | |
− | खिड़कियां में जाली होनी चाहिए
| + | |
− | | + | |
− | पर ऐसी मार तमाम बंदिशों के बाद भी
| + | |
− | कहां थमता है प्यार
| + | |
− | | + | |
− | जब वे सबसे ज्यादा
| + | |
− | निश्चिंत
| + | |
− | और बेपरवाह होते हैं
| + | |
− | उसी समय
| + | |
− | जाने कहां से
| + | |
− | आ टपकता है एक चूजा
| + | |
− | | + | |
− | भविष्यपात की सारी तरकीबें
| + | |
− | रखी रह जाती हैं
| + | |
− | और कृष्ण
| + | |
− | बाहर आ जाता है...
| + | |
− | | + | |
− | मेरा काबुलीवाला .......- अरूणा राय
| + | |
− | ...............................................................
| + | |
− | | + | |
− | वो
| + | |
− | जो इक
| + | |
− | छोटी सी बच्ची है
| + | |
− | जिसकी निगाहें
| + | |
− | मेरी आत्मा के
| + | |
− | हरे चिकने पात पर
| + | |
− | गिरती रहती हैं अनवरत
| + | |
− | बूंदों की तरह
| + | |
− | वो ही
| + | |
− | मेरी छोटी सी बच्ची
| + | |
− | अपनी सितारों सी टिमकती आंखें
| + | |
− | मेरी आंखों में डाल
| + | |
− | मचलती सी बोलती है
| + | |
− | कितने अच्छे हो आप
| + | |
− | | + | |
− | मैं
| + | |
− | और अच्छा ?
| + | |
− | (मेरी तोते सी लाल नाक पकड़
| + | |
− | हिलाता.....)
| + | |
− | अच्छे की बच्ची
| + | |
− | कुछ बड़ी हो जा
| + | |
− | तो तू उससे भी अच्छी हो जावेगी
| + | |
− | और ...और सच्ची
| + | |
− | और ...और नेक
| + | |
− | ला दे अपना हाथ
| + | |
− | क्या
| + | |
− | आज नही करेगी
| + | |
− | हैंडशेक...
| + | |
− | | + | |
− | (ये मेरे काबुली वाले के लिए,कि जिसका वादा है एक रोज़ आने का.....)
| + | |
− | | + | |
− | और तीन दिल चाक हैं ... - अरूणा राय
| + | |
− | ...............................................................
| + | |
− | | + | |
− | चन्दन की दो डालियां
| + | |
− | जब टकरायीं
| + | |
− | तो पैदा हुई अग्नि
| + | |
− | और लगी फैलने
| + | |
− | चहुंओर
| + | |
− | | + | |
− | खुशबू तो
| + | |
− | एक ही थी
| + | |
− | दोंनों की
| + | |
− | सो उसने चाहा
| + | |
− | कि रोके इस आग को
| + | |
− | पर खुद को
| + | |
− | खोकर रही
| + | |
− | उधर आग थी
| + | |
− | कि खाक होकर रही
| + | |
− | | + | |
− | अब
| + | |
− | न चंदन है
| + | |
− | ना खुशबू है
| + | |
− | चतुर्दिक
| + | |
− | उड़ती हुई राख है
| + | |
− | और तीन दिल चाक हैं...
| + | |
− | | + | |
− | अगले मौसमों के लिए अलविदा कहते हुए ....- अरूणा राय
| + | |
− | ...............................................................
| + | |
− | | + | |
− | सार्वजनिक तौर पर
| + | |
− | कम ही मिलते हम
| + | |
− | भाषा के एक छोर पर
| + | |
− | बहुत कम बोलते हुए
| + | |
− | अक्सर
| + | |
− | बगलें झांकते
| + | |
− | भाषा के तंतुओं से
| + | |
− | एक दूसरे को टटोलते
| + | |
− | दूरी का व्यवहार दिखाते
| + | |
− | | + | |
− | क्षण भर को छूते नोंक भर
| + | |
− | एक दूसरे को और
| + | |
− | पा जाते संपूर्ण
| + | |
− | | + | |
− | हमारे उसके बीच समय
| + | |
− | एक समुद्र सा होता
| + | |
− | असंभव दूरियों के
| + | |
− | | + | |
− | स्वप्निल क्षणों में जिसे
| + | |
− | उड़ते बादलों से
| + | |
− | पार कर जाते हम
| + | |
− | धीरे धीरे
| + | |
− | | + | |
− | अगले मौसमों के लिए
| + | |
− | अलविदा कहते हुए ...
| + | |
− | | + | |
− | मेरा ह्दय ...- अरूणा राय
| + | |
− | ...............................................................
| + | |
− | | + | |
− | उसकी निगाहें
| + | |
− | उसके चेहरे पर खिची
| + | |
− | स्मित-मुस्कान
| + | |
− | उसकी चंचलता
| + | |
− | मुझे
| + | |
− | स्थिर कर रही थी
| + | |
− | | + | |
− | मेरी आंखें
| + | |
− | झुकी जा रही थीं
| + | |
− | और मेरा ह्दय
| + | |
− | खोल रहा था
| + | |
− | खुद को...
| + | |
− | | + | |
− | मेरी चुप्पी
| + | |
− | बज रही थी
| + | |
− | उसके भीतर
| + | |
− | जिसके शोर में
| + | |
− | ढूंढ रहा था वह
| + | |
− | धड़कनों को अपनी।
| + | |
− | | + | |
− | | + | |
− | | + | |
− | | + | |
− | | + | |
− | कि अपनी हजार सूरतें निहार सकूं. - अरूणा राय
| + | |
− | ...............................................................
| + | |
− | | + | |
− | जिस समय
| + | |
− | मैं उसे
| + | |
− | अपना आईना बता रही थी
| + | |
− | दरक रहा था वह
| + | |
− | उसी वक्त
| + | |
− | टुकडों में बिखर जाने को बेताब सा
| + | |
− | हालांकि
| + | |
− | उसके जर्रे जर्रे में
| + | |
− | मेरी ही रंगो आब
| + | |
− | झलक रही थी
| + | |
− | पर मैं क्या कर सकती थी
| + | |
− | कि वह आईना था
| + | |
− | तो उसे बिखरना ही था
| + | |
− | अब भी मैं उसकी आंखें हूं
| + | |
− | और हर जर्रे से
| + | |
− | वे आंखें
| + | |
− | मुझे ही निहार रही हैं
| + | |
− | पर क्या कर सकती हूं मैं
| + | |
− | कि मैंने ही बिखेर दिया है उसे
| + | |
− | कि अपनी हजार सूरतें
| + | |
− | निहार सकूं ...
| + | |
− | | + | |
− | तू मेरा आइना है और तू ... - अरूणा राय
| + | |
− | ...............................................................
| + | |
− | | + | |
− | पूछती हूं मैं.........
| + | |
− | ... क्या होता है प्यार
| + | |
− | तो कहता है वो
| + | |
− | के जो तू कहती है
| + | |
− | कि तू आइना है मेरा
| + | |
− | और जो मैं कहता हूं
| + | |
− | के आंखें है तू मेरी
| + | |
− | यही ... यही है प्यार
| + | |
− | अच्छा???????
| + | |
− | तो यह
| + | |
− | जो तेरा मेरा है
| + | |
− | यही प्यार है???????
| + | |
− | मतलब ...
| + | |
− | सारा कुछ गड्ड मड्ड कर देना
| + | |
− | कि ना कुछ तेरा ... ना मेरा रहे कुछ?
| + | |
− | हां ... हां ... चीखता है वह
| + | |
− | तो फिर
| + | |
− | तेरी कविता मेरी हुई
| + | |
− | हां चल हुई
| + | |
− | और ... मेरे आंसू भी तेरे हुए
| + | |
− | अरे ... ओह तू तो सचमुच रोने लगी
| + | |
− | ओह ... हां हुई
| + | |
− | पर इसका मतलब ये नहीं
| + | |
− | के तू टेसुए बहाती रहे ताउम्र
| + | |
− | तो क्या प्यार में
| + | |
− | केवल खुशी वाले पल चलेंगे
| + | |
− | -फिर गम वाले ये पल कौन लेगा???????
| + | |
− | ... पूछती हूं मैं
| + | |
− | वह सोच में पड़ जाता है
| + | |
− | गम वाले... हां हां गमवाले हुए मेरे...
| + | |
− | पर कुछ
| + | |
− | अपने लिए भी रखोगी के
| + | |
− | बस यूं ही उड़ते रहने का ख्याल है
| + | |
− | वाह... पर क्यों...
| + | |
− | अरे गम वाले तो मेरे पास भी
| + | |
− | इफरात हैं...
| + | |
− | | + | |
− | यादें और भूलना ..........- अरूणा राय
| + | |
− | ...............................................................
| + | |
− | | + | |
− | कुछ बूंदें टपका....
| + | |
− | हल्की हो गयी........
| + | |
− | कि
| + | |
− | कुछ हुआ ही ना हो......
| + | |
− | फिर कुछ सुना..........
| + | |
− | फिर याद किया किसी को............
| + | |
− | पर नहीं आए आंसू
| + | |
− | फिर
| + | |
− | गुजर गयी रात भी
| + | |
− | गहरी नींद थी
| + | |
− | स्वप्नहीन
| + | |
− | सुबह जगी
| + | |
− | तरोताजा
| + | |
− | किताबें पढीं.............
| + | |
− | नहीं
| + | |
− | अब यादें शेष नहीं
| + | |
− | वाह - जादू हो गया आज
| + | |
− | मुक्त हो गयी वह तो...........
| + | |
− | | + | |
− | फिर बैठ गयी कुर्सी पर
| + | |
− | तभी दूर आकाश में
| + | |
− | यूकेलिप्टस हिले
| + | |
− | कि जाने कहां से फिर
| + | |
− | छाने लगी धूंध
| + | |
− | और छाती चली गयी...
| + | |
− | | + | |
− |
| + | |
− | | + | |
− | अरूणाकाश- अरूणा राय
| + | |
− | ...............................................................
| + | |
− | | + | |
− | जीवन के तमाम रंग
| + | |
− | खिलते हैं अरूणाकाश
| + | |
− | में
| + | |
− | तितलियां उड़ती हैं
| + | |
− | पक्षी अपनी चहचहाहटों
| + | |
− | से
| + | |
− | गूंजाते हैं अरूणाकाश
| + | |
− | तड़कर गिरने से पहले
| + | |
− | बिजलियां कौंधती हैं
| + | |
− | अरूणाकाश में
| + | |
− | वहां संचित रहते हैं
| + | |
− | सारे राग विराग
| + | |
− | दुखी आदमी ताकता है उपर
| + | |
− | अरूणाकाश
| + | |
− | ठहाके उसे ही गुंजाते
| + | |
− | हैं
| + | |
− | आंसुओं के साथ मिट्टी
| + | |
− | में गिरता
| + | |
− | जब भारी हो जाता है दुख
| + | |
− | तब उपर उठती आह
| + | |
− | समेट लेता है
| + | |
− | अरूणाकाश।
| + | |
− | | + | |
− | हां जी हम प्यार में हैं- अरूणा राय
| + | |
− | ...............................................................
| + | |
− | .......
| + | |
− | हां जी इन दिनों हम
| + | |
− | प्यार
| + | |
− | में हें
| + | |
− | अब यह मत पूछिएगा कि
| + | |
− | किसके
| + | |
− | हवाओं के चांदनी के या
| + | |
− | रेत के
| + | |
− | बस प्यार है और हम
| + | |
− | लिखते चल
| + | |
− | रहे हैं कोई नाम
| + | |
− | जहां तहां और उसके आजू
| + | |
− | बाजू
| + | |
− | लिख दे रहे हैं पवित्र
| + | |
− | मासूम निर्दोष
| + | |
− | और यह सोचते हैं कि ये
| + | |
− | उसे जाहिर कर देंगे या
| + | |
− | ढक लेंगे
| + | |
− | | + | |
− | आजकल कभी भी खटखटा देते
| + | |
− | हैं
| + | |
− | एक दूसरे का ह्दय
| + | |
− | और हड़बड़ाए से कह
| + | |
− | बैठते हैं
| + | |
− | लगता है बेवक्त आ गए
| + | |
− | और ऐसा कहते हुए समाते
| + | |
− | चले
| + | |
− | जाते हैं
| + | |
− | एक दूसरे के भीतर
| + | |
− | | + | |
− | फिर अचानक खुद को
| + | |
− | समेटते
| + | |
− | चल देते हैं झटके से
| + | |
− | कि फिर बात करते हैं
| + | |
− | कि एक पूछता है
| + | |
− | अरे आपका कुछ छूटा जा
| + | |
− | रहा है यहां
| + | |
− | कोर्इ दिल विल सा तो
| + | |
− | नहीं
| + | |
− | | + | |
− | नहीं वह आपका ही है
| + | |
− | मेरे तो किसी काम का
| + | |
− | नहीं
| + | |
− | | + | |
− | ऐसा कहता मन मसोसता
| + | |
− | झटके से छुपा लेता है
| + | |
− | उसे मन
| + | |
− | | + | |
− | कभी यूं ही बज उठती है
| + | |
− | मोबाइल
| + | |
− | पता चलता है गलती से दब
| + | |
− | गया
| + | |
− | था नंबर
| + | |
− | कि घंटी बजती है दिमाग
| + | |
− | की
| + | |
− | वह लगता है चीखने
| + | |
− | संभलो दिल दिल दिल
| + | |
− | कि हत्था मार बंद करता
| + | |
− | उसका हंगामा .......
| + | |
− | | + | |
− | | + | |
− | | + | |
− | अब कोई उसे कहां ढूंढे -- अरूणा राय
| + | |
− | ...............................................................
| + | |
− | | + | |
− | मेरी पतंग कटी
| + | |
− | और
| + | |
− | खोती चली गई
| + | |
− | अरूणाकाश में...........
| + | |
− | अब कोई
| + | |
− | उसे कहां ढूंढे।.................
| + | |