भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"प्यार में / अरुणा राय" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
 
(2 सदस्यों द्वारा किये गये बीच के 2 अवतरण नहीं दर्शाए गए)
पंक्ति 3: पंक्ति 3:
 
|रचनाकार=अरुणा राय
 
|रचनाकार=अरुणा राय
 
}}
 
}}
 
+
{{KKAnthologyLove}}
 +
{{KKCatKavita‎}}
 +
<poem>
 
प्‍यार में
 
प्‍यार में
 
 
हम क्‍यों लड़ते हैं इतना
 
हम क्‍यों लड़ते हैं इतना
 
+
बच्‍चों-सा
बच्‍चों सा
+
 
+
 
जबकि बचपना
 
जबकि बचपना
 
 
छोड आए कितना पीछे
 
छोड आए कितना पीछे
 
  
 
अक्‍सर मैं  
 
अक्‍सर मैं  
 
 
छेड़ती हूँ उसे  
 
छेड़ती हूँ उसे  
 
+
कि जाए बतियाए अपनी लालपरी से
कि जाए बतिआए अपनी लालपरी से
+
 
+
 
और झल्‍लाता-सा  
 
और झल्‍लाता-सा  
 
+
चीख़ता है वह-- कपार...
चीख़ता है वह- कपार...
+
 
+
 
फिर पूछती हूँ मैं  
 
फिर पूछती हूँ मैं  
 
 
यह कपार क्‍या हुआ, जानेमन
 
यह कपार क्‍या हुआ, जानेमन
 
 
तो हँसता है वह-  
 
तो हँसता है वह-  
 
 
कुछ नहीं... मेरा सर...
 
कुछ नहीं... मेरा सर...
  
 
+
फिर बोलता है वह--
फिर बोलता है वह-  
+
 
+
 
और तुम्‍हारे जो इतने चंपू हैं और
 
और तुम्‍हारे जो इतने चंपू हैं और
 
 
तुम्‍हारा वह दंतचिपोर...
 
तुम्‍हारा वह दंतचिपोर...
 
 
ओह शिट... यह चिपोर क्‍या हुआ...
 
ओह शिट... यह चिपोर क्‍या हुआ...
 
 
नहीं, मेरा मतलब  
 
नहीं, मेरा मतलब  
 
 
हँसमुख था  
 
हँसमुख था  
 
 
जो मुँह लटकाए पड़ा रहता है  
 
जो मुँह लटकाए पड़ा रहता है  
 
 
दर पर तेरे...
 
दर पर तेरे...
 
  
 
हा हा हा
 
हा हा हा
 
 
छोड़िए बेचारे को  
 
छोड़िए बेचारे को  
 
 
कितना सीधा है वह  
 
कितना सीधा है वह  
 
 
आपकी तरह तंग तो नहीं करता
 
आपकी तरह तंग तो नहीं करता
 
 
बात-बेबात
 
बात-बेबात
 
  
 
और आपकी वह सहेली
 
और आपकी वह सहेली
 
 
कैसी है  
 
कैसी है  
 
 
पूछता है वह... कौन  
 
पूछता है वह... कौन  
 
 
अरे वही जो हमेशा अपना झखुरा  
 
अरे वही जो हमेशा अपना झखुरा  
 
 
फैलाए रहती है
 
फैलाए रहती है
 
 
व्‍हाट झखुरा... झल्‍लाता है वह
 
व्‍हाट झखुरा... झल्‍लाता है वह
 
 
अरे वही
 
अरे वही
 
 
बाले तेरे बालजाल में कैसे उलझा दूँ लोचन... वाला
 
बाले तेरे बालजाल में कैसे उलझा दूँ लोचन... वाला
 
 
मतलब जुल्‍फों वाली आपकी सुनयना
 
मतलब जुल्‍फों वाली आपकी सुनयना
 
  
 
अरे  
 
अरे  
 
 
अच्‍छी तो है वह कितनी
 
अच्‍छी तो है वह कितनी
 
 
उसी दिन बेले की कलियाँ सजा रखी थीं
 
उसी दिन बेले की कलियाँ सजा रखी थीं
  
 
+
तो... तो उसी के पास क्‍यों नहीं चले जाते
तो तो उसी के पास क्‍यों नहीं चले जाते
+
 
+
 
अरे!
 
अरे!
 
 
वहीं से तो चला आ रहा हूँ... हा हा हा
 
वहीं से तो चला आ रहा हूँ... हा हा हा
 
 
देखो मेरी आँखों में उसकी ख़ुशबू  
 
देखो मेरी आँखों में उसकी ख़ुशबू  
 
 
दिख नहीं रही...
 
दिख नहीं रही...
 
  
 
झपटती हूँ मैं
 
झपटती हूँ मैं
 
 
और वार बचाता वह  
 
और वार बचाता वह  
 
 
संभाल लेता है मुझे
 
संभाल लेता है मुझे
 
 
और मेरा सिर सूंघता  
 
और मेरा सिर सूंघता  
 
+
कहता है-- ऐसी ही तो ख़ुशबू थी उसके बालों की भी
कहता है- ऐसी ही तो ख़ुशबू थी उसके बालों की भी
+
 
+
 
... हा हा हा...
 
... हा हा हा...
 +
</poem>

12:35, 15 अप्रैल 2011 के समय का अवतरण

प्‍यार में
हम क्‍यों लड़ते हैं इतना
बच्‍चों-सा
जबकि बचपना
छोड आए कितना पीछे

अक्‍सर मैं
छेड़ती हूँ उसे
कि जाए बतियाए अपनी लालपरी से
और झल्‍लाता-सा
चीख़ता है वह-- कपार...
फिर पूछती हूँ मैं
यह कपार क्‍या हुआ, जानेमन
तो हँसता है वह-
कुछ नहीं... मेरा सर...

फिर बोलता है वह--
और तुम्‍हारे जो इतने चंपू हैं और
तुम्‍हारा वह दंतचिपोर...
ओह शिट... यह चिपोर क्‍या हुआ...
नहीं, मेरा मतलब
हँसमुख था
जो मुँह लटकाए पड़ा रहता है
दर पर तेरे...

हा हा हा
छोड़िए बेचारे को
कितना सीधा है वह
आपकी तरह तंग तो नहीं करता
बात-बेबात

और आपकी वह सहेली
कैसी है
पूछता है वह... कौन
अरे वही जो हमेशा अपना झखुरा
फैलाए रहती है
व्‍हाट झखुरा... झल्‍लाता है वह
अरे वही
बाले तेरे बालजाल में कैसे उलझा दूँ लोचन... वाला
मतलब जुल्‍फों वाली आपकी सुनयना

अरे
अच्‍छी तो है वह कितनी
उसी दिन बेले की कलियाँ सजा रखी थीं

तो... तो उसी के पास क्‍यों नहीं चले जाते
अरे!
वहीं से तो चला आ रहा हूँ... हा हा हा
देखो मेरी आँखों में उसकी ख़ुशबू
दिख नहीं रही...

झपटती हूँ मैं
और वार बचाता वह
संभाल लेता है मुझे
और मेरा सिर सूंघता
कहता है-- ऐसी ही तो ख़ुशबू थी उसके बालों की भी
... हा हा हा...