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"अंतर्यात्रा / मंजुला सक्सेना" के अवतरणों में अंतर

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अंतर्यात्रा
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शब्द छूटे भाव की
 
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अनुरागिनी मैं हो गई।
शब्द छूटे भाव कि
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देह छूती श्वास की अनुगामिनी
अनुरागिनी में हो गयी .
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मैं हो गई ।
देह छूती श्वास कि अनुगामिनी
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क्या भला बाहर मैं खोजूँ ?
में हो गयी .
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क्यूँ भला और किस से रीझूँ ?
क्या भला बाहर में खोजूँ ?
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क्यूँ भला और किस से रीझूं?
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आत्मरस का स्वाद पा,
 
आत्मरस का स्वाद पा,
आत्म्सलिल में हो निमग्न
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आत्मसलिल में हो निमग्न
आत्मपद कि चाह में ,
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आत्मपद की चाह में,
उन्मादिनी में हो गयी .
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उन्मादिनी में हो गई ।
 
मैं तो अंतर्लापिका हूँ
 
मैं तो अंतर्लापिका हूँ
कोई बूझेगा मुझे क्या?
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कोई बूझेगा मुझे क्या ?
जो हुए हैं 'स्व'स्थ स्वतः
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जो हुए हैं 'स्वस्थ स्वतः
उन महिम सुधि आत्मग्यों के
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उन महिम सुधि आत्मज्ञों के
प्रेम के रसपान कि अधिकारिणी
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प्रेम के रसपान की अधिकारिणी
मैं हो गयी,
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मैं हो गई,
 
शब्द छूटे भाव की
 
शब्द छूटे भाव की
अनुरागिनी मैं हो गयी
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अनुरागिनी मैं हो गई
 
देह छूती श्वास की अनुगामिनी
 
देह छूती श्वास की अनुगामिनी
मैं हो गयी !
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मैं हो गई !
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'''रचनाकाल : २२-१-१९९८'''
 
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12:49, 15 अप्रैल 2011 के समय का अवतरण

शब्द छूटे भाव की
अनुरागिनी मैं हो गई।
देह छूती श्वास की अनुगामिनी
मैं हो गई ।
क्या भला बाहर मैं खोजूँ ?
क्यूँ भला और किस से रीझूँ ?
आत्मरस का स्वाद पा,
आत्मसलिल में हो निमग्न
आत्मपद की चाह में,
उन्मादिनी में हो गई ।
मैं तो अंतर्लापिका हूँ
कोई बूझेगा मुझे क्या ?
जो हुए हैं 'स्वस्थ स्वतः
उन महिम सुधि आत्मज्ञों के
प्रेम के रसपान की अधिकारिणी
मैं हो गई,
शब्द छूटे भाव की
अनुरागिनी मैं हो गई
देह छूती श्वास की अनुगामिनी
मैं हो गई !

रचनाकाल : २२-१-१९९८