भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"मेरी पत्नी बोली ‘म्याऊँ’ / विमल कुमार" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= विमल कुमार |संग्रह=बेचैनी का सबब / विमल कुमार }} {{KK…)
 
 
(इसी सदस्य द्वारा किया गया बीच का एक अवतरण नहीं दर्शाया गया)
पंक्ति 4: पंक्ति 4:
 
|संग्रह=बेचैनी का सबब / विमल कुमार
 
|संग्रह=बेचैनी का सबब / विमल कुमार
 
}}
 
}}
 +
{{KKAnthologyLove}}
 
{{KKCatKavita}}
 
{{KKCatKavita}}
 
<poem>
 
<poem>
 
वह मेरी खिड़की के सामने
 
वह मेरी खिड़की के सामने
धीरे से बोली-- ‘म्याऊं’
+
धीरे से बोली-- ‘म्याऊँ’
 
मैं उस समय सोया हुआ था
 
मैं उस समय सोया हुआ था
 
मुझे लगा मेरी नींद में
 
मुझे लगा मेरी नींद में

22:25, 17 अप्रैल 2011 के समय का अवतरण

वह मेरी खिड़की के सामने
धीरे से बोली-- ‘म्याऊँ’
मैं उस समय सोया हुआ था
मुझे लगा मेरी नींद में
आ गई है कोई बिल्ली

उसकी लम्बी छलांग से
टूट गयी मेरी नींद
बाहर गया
जब मैं उसका पीछा करता हुआ
तो देखा
मेरी पत्नी थी

मुझे देख मुस्कराती हुई
फिर वह बरसने लगी
मेघ की तरह
मेरे कमरे में

मैं पहली बार भीगा था
कोई सपना जो देखा था
वर्षों पहले
जैसे वह सच हुआ था
मैंने उसे कई बार छुआ था

पर आज जो कुछ मेरे मन में हुआ
वह कभी नहीं हुआ था