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− | + | पुस्तक पूरा साथ निभाती | |
− | + | छूटें अगर अकेले तो यह | |
− | + | झटपट उसको मार भगाती | |
− | + | मैं तो कहता हर मौक़े पर | |
− | + | ढेर पुस्तकें हमको मिलती | |
− | + | सच कहता हूँ मेरी ही क्या | |
− | + | हर बच्चे की बाँछे खिलती | |
− | + | नदिया के जल सी ये कोमल | |
− | + | पर्वत के पत्थर सी कड़यल | |
− | + | चिकने फर्श से ज्यादा चिकनी | |
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खूब खुरदरी जैसे दाढ़ी | खूब खुरदरी जैसे दाढ़ी | ||
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11:17, 18 अप्रैल 2011 के समय का अवतरण
मुझको तो पुस्तक तुम सच्ची
अपनी नानी / दादी लगती
ये दोनों तो अलग शहर में
पर तुम तो घर में ही रहती
जैसे नानी दुम दुम वाली
लम्बी एक कहानी कहती
जैसे चलती अगले भी दिन
दादी एक कहानी कहती
मेरी पुस्तक भी तो वैसी
ढेरों रोज कहानी कहती
पर मेरी पुस्तक तो भैया
पढ़ी-लिखी भी सबसे ज़्यादा
जो भी चाहूँ झट बतलाती
नया पुराना ज़्यादा-ज़्यादा
एक पते की बात बताऊँ
पुस्तक पूरा साथ निभाती
छूटें अगर अकेले तो यह
झटपट उसको मार भगाती
मैं तो कहता हर मौक़े पर
ढेर पुस्तकें हमको मिलती
सच कहता हूँ मेरी ही क्या
हर बच्चे की बाँछे खिलती
नदिया के जल सी ये कोमल
पर्वत के पत्थर सी कड़यल
चिकने फर्श से ज्यादा चिकनी
खूब खुरदरी जैसे दाढ़ी