भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"तुम्हारी याद / अनिल जनविजय" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) |
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 2: | पंक्ति 2: | ||
{{KKRachna | {{KKRachna | ||
|रचनाकार=अनिल जनविजय | |रचनाकार=अनिल जनविजय | ||
− | |संग्रह=राम जी भला करें | + | |संग्रह=राम जी भला करें / अनिल जनविजय |
}} | }} | ||
19:07, 21 अक्टूबर 2007 का अवतरण
(मधु सोमानी के लिए)
तुम्हारी याद आती है
जैसे लगती है भूख
लगती है प्यास
आता है गुस्सा
आता है प्यार
जैसे कभी-कभी केलि के बाद
आती है गहरी नींद
वैसे ही आती है याद तुम्हारी
तुम्हारी याद आती है
जैसे कभी किसी बात पर आती है हँसी
किसी-किसी बात पर रोना
कभी अचानक गाने का मन करता है
उछल-कूद हंगामा करने का मन करता है
वैसे ही आती है याद तुम्हारी
तुम्हारी याद आती है
जैसे पेड़ों पर आते हैं फल
जंगल में चहचहाते हैं पक्षी
रात के बाद आता है दिन
और सूरज के बाद निकलता है चाँद
जैसे बदलती हैं ऋतुएँ
एक के बाद एक छह बार
मौसम के घोड़े पर सवार
वैसे ही आती है तुम्हारी याद
(1995 में रचित)