भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"मेरे तो गिरधर गोपाल दूसरो न कोई / मीराबाई" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Pratishtha (चर्चा | योगदान) |
|||
पंक्ति 2: | पंक्ति 2: | ||
{{KKRachna | {{KKRachna | ||
|रचनाकार=मीराबाई | |रचनाकार=मीराबाई | ||
− | }} | + | }} {{KKCatKavita}} |
− | + | {{KKAnthologyKrushn}} | |
राग झंझोटी | राग झंझोटी | ||
20:12, 18 अप्रैल 2011 का अवतरण
राग झंझोटी
मेरे तो गिरधर गोपाल दूसरो न कोई॥
जाके सिर है मोरपखा मेरो पति सोई।
तात मात भ्रात बंधु आपनो न कोई॥
छांड़ि दई कुलकी कानि कहा करिहै कोई॥
संतन ढिग बैठि बैठि लोकलाज खोई॥
चुनरीके किये टूक ओढ़ लीन्हीं लोई।
मोती मूंगे उतार बनमाला पोई॥
अंसुवन जल सींचि-सींचि प्रेम-बेलि बोई।
अब तो बेल फैल गई आणंद फल होई॥
दूधकी मथनियां बड़े प्रेमसे बिलोई।
माखन जब काढ़ि लियो छाछ पिये कोई॥
भगति देखि राजी हुई जगत देखि रोई।
दासी मीरा लाल गिरधर तारो अब मोही॥
शब्दार्थ :- कानि =मर्यादा, लोकलाज। अंसुवन जल = अश्रुरूपी जल से। आणद =आनन्दमय। फल =परिणाम। राजी =खुश। रोई =दुखी हुई।