भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"भोर भये जागे गिरिधारी / भारतेंदु हरिश्चंद्र" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) |
Pratishtha (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 3: | पंक्ति 3: | ||
|रचनाकार=भारतेंदु हरिश्चंद्र | |रचनाकार=भारतेंदु हरिश्चंद्र | ||
}} | }} | ||
− | {{ | + | {{KKCatKavita}} |
+ | {{KKAnthologyKrushn}} | ||
<poem> | <poem> | ||
भोर भये जागे गिरिधारी। | भोर भये जागे गिरिधारी। |
20:13, 18 अप्रैल 2011 के समय का अवतरण
भोर भये जागे गिरिधारी।
सगरी निसि रस बस कर बितई, कुंज-महल सुखकारी।
पट उतारि तिय-मुख अवलोकत चंद-बदन छवि भारी।
बिलुलित केस पीक अरु अंजन फैली बदन उज्यारी।
नाहिं जगावत जानि नींद बहु समुझि सुरति-श्रम भारी।
छबि लखि मुदित पीत पट कर लै रहे भँवर निरुवारी।
संगम धुनि मधुरै सुर गावत चौंकि उठी तब प्यारी।
रही लपटाइ जंभाइ पिया उर, ’हरीचंद’ बलिहारी॥