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राग रामकली
भावार्थ ;--
श्यामसुन्दर अपने आँगनमें आँगन में कुछ गा रहे हैं । वे अपने नन्हें-नन्हें चरणों से नाचते जाते हैं और अपने-आप अपने ही चित्तको चित्त को आनन्दित कर रहे हैं । कभी दोनों हाथ उठाकर `कजरी'`धौरी' आदि नामों से गायोंको गायों को पुकारकर बुलाते हैं, कभी नन्द बाबा को पुकारते हैं और कभी घरके घर के भीतर चले आते हैं । अपने हाथपर हाथ पर थोड़ा-सा मक्खन लेकर छोटे-से मुखमें मुख में डालते हैं, कभी मणिमय खम्भेमें खम्भे में अपना प्रतिबिम्ब देखकर (उसे अन्य बालक समझकर) मक्खन लेकर उसे खिलाते हैं । श्रीयशोदाजी श्रीयशोदा जी छिपकर यह लीला देखरही देख रही हैं । वे हर्षित हो रही हैं, (अपनी लीलासे लीला से प्रभु) उनका आनन्द बढ़ा रहे हैं। सूरदासजी सूरदास जी कहते हैं कि श्यामसुन्दरके श्यामसुन्दर के बालचरित्र नित्य-नित्य देखनेमें देखने में रुचिकर लगते हैं । (उनमें नित्य नवीन आनन्द मिलता है।)