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00:44, 19 अप्रैल 2011 के समय का अवतरण
क्यों मिले हैं तुम्हें इतने हाथ,
ओ सर्वशक्तिमान शिव ?
मुझे तो वे कम पड़ जाते हैं
जब हल चलाता हूँ
जब चट्टानें फोड़ता हूँ
जब औजार बनाता हूँ
जब ख़ुशी और ग़मी में डूबी
प्रेमिका का आलिंगन करता हूँ
जब गिटार बजाता हूँ
जब वनमेथी बीनता हूँ...
दो मुझे अतिरिक्त हाथ
दो मुझे अपने हाथ
तुमने तो कभी भी उनसे
छुआ नहीं वीणा के तारों को
सामना नहीं किया गंगा की बाढ़ का
रोका नहीं कभी तूफ़ानों को
तुमने पोंछे नहीं अनाथों के आँसू
कम नहीं की लोगों की तकलीफ़ें ।
किसलिए, ओ सर्वशक्तिमान शिव !
किसलिए मिले हैं तुम्हें इतने हाथ ?
रूसी से अनुवाद : वरयाम सिंह