भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"ओ मेरे पिता (समर्पण) / एकांत श्रीवास्तव" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: मायावी सरोवर की तरह<br /> अदृश्‍य हो गये पिता<br /> रह गये हम<br /> पानी की ख…)
 
 
(2 सदस्यों द्वारा किये गये बीच के 2 अवतरण नहीं दर्शाए गए)
पंक्ति 1: पंक्ति 1:
मायावी सरोवर की तरह<br />
+
{{KKGlobal}}
अदृश्‍य हो गये पिता<br />
+
{{KKRachna
रह गये हम<br />
+
|रचनाकार=एकांत श्रीवास्तव
पानी की खोज में भटकते पक्षी<br />
+
|संग्रह=अन्न हैं मेरे शब्द / एकांत श्रीवास्तव
<br />
+
}}
ओ मेरे आकाश पिता<br />
+
{{KKCatKavita}}
टूट गये हम<br />
+
{{KKAnthologyPita}}
तुम्‍हारी नीलिमा में टॅंके<br />
+
<Poem>
झिलमिल तारे<br />
+
मायावी सरोवर की तरह
<br />
+
अदृश्‍य हो गए पिता
ओ मेरे जंगल पिता<br />
+
रह गए हम
सूख गये हम<br />
+
पानी की खोज में भटकते पक्षी
तुम्‍हारी हरियाली में बहते<br />
+
 
कलकल झरने<br />
+
ओ मेरे आकाश पिता
<br />
+
टूट गए हम
ओ मेरे काल पिता<br />
+
तुम्‍हारी नीलिमा में टँके
बीत गये तुम<br />
+
झिलमिल तारे
रह गये हम<br />
+
 
तुम्‍हारे कैलेण्‍डर की<br />
+
ओ मेरे जंगल पिता
उदास तारीखें<br />
+
सूख गए हम
<br />
+
तुम्‍हारी हरियाली में बहते
हम झेलेंगे दुःख<br />
+
कलकल झरने
पोंछेगे ऑंसू<br />
+
 
और तुम्‍हारे रास्‍ते पर चलकर<br />
+
ओ मेरे काल पिता
बनेंगे सरोवर, आकाश, जंगल और काल<br />
+
बीत गए तुम
ताकि हरी हो घर की एक-एक डाल.<br />
+
रह गए हम
<br />
+
तुम्‍हारे कैलेण्‍डर की
 +
उदास तारीखें
 +
 
 +
हम झेलेंगे दुःख
 +
पोंछेंगे आँसू
 +
और तुम्‍हारे रास्‍ते पर चलकर
 +
बनेंगे सरोवर, आकाश, जंगल और काल
 +
ताकि हरी हो घर की एक-एक डाल।
 +
</poem>

00:55, 19 अप्रैल 2011 के समय का अवतरण

मायावी सरोवर की तरह
अदृश्‍य हो गए पिता
रह गए हम
पानी की खोज में भटकते पक्षी

ओ मेरे आकाश पिता
टूट गए हम
तुम्‍हारी नीलिमा में टँके
झिलमिल तारे

ओ मेरे जंगल पिता
सूख गए हम
तुम्‍हारी हरियाली में बहते
कलकल झरने

ओ मेरे काल पिता
बीत गए तुम
रह गए हम
तुम्‍हारे कैलेण्‍डर की
उदास तारीखें

हम झेलेंगे दुःख
पोंछेंगे आँसू
और तुम्‍हारे रास्‍ते पर चलकर
बनेंगे सरोवर, आकाश, जंगल और काल
ताकि हरी हो घर की एक-एक डाल।