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"पिता-1 / चंद्र रेखा ढडवाल" के अवतरणों में अंतर

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पिता (एक)
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पिता! मेरे कंधों पर
 
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सुर्ख़ाब के पर रख दो
 
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मैं छू लेना चाहता हूँ
 
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पहाड़ों की नर्म धूप
 
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मेरे पैरों में किश्तियाँ बाँध दो
 
मेरे पैरों में किश्तियाँ बाँध दो
 
मैं पा लेना चाहता हूँ
 
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सात समंदर पार के
 
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नीलम देश की राजकन्ता
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नीलम देश की राजकन्या
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मेरी हथेलियों पर बो दो सरसों के बीज
 
मेरी हथेलियों पर बो दो सरसों के बीज
 
जो रातों-रात भरी-भरी फलियों से लदी
 
जो रातों-रात भरी-भरी फलियों से लदी
 
पौध हो जाएँ.
 
पौध हो जाएँ.
 
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00:55, 19 अप्रैल 2011 के समय का अवतरण


 पिता (एक)

पिता! मेरे कंधों पर
सुर्ख़ाब के पर रख दो
मैं छू लेना चाहता हूँ
पहाड़ों की नर्म धूप

मेरे पैरों में किश्तियाँ बाँध दो
मैं पा लेना चाहता हूँ
सात समंदर पार के
नीलम देश की राजकन्या

मेरी हथेलियों पर बो दो सरसों के बीज
जो रातों-रात भरी-भरी फलियों से लदी
पौध हो जाएँ.