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"पिता जी ( शब्दांजलि-३) / नवनीत शर्मा" के अवतरणों में अंतर

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ख़ूब लड़ी वह जेब
 
ख़ूब लड़ी वह जेब
  

01:03, 19 अप्रैल 2011 के समय का अवतरण

 
ख़ूब लड़ी वह जेब

सरसों के तेल की धार से

कोयले की बोरी ले कर

लड़ते रहे वे हाथ

जाड़ों से ।

पिता सोए

बड़के की फीस के हिज्‍जे गुनते

मंझले की मंजिल पर

नींद में बुड़बुड़ाते

और सुबह से भी पहले जाग उठते

छोटा अभी बहुत ही छोटा है

बड़ा होगा न जाने कब.