"पिता / हेमन्त जोशी" के अवतरणों में अंतर
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झांकने पर भीतर | झांकने पर भीतर | ||
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लौट आता हूँ सहम कर | लौट आता हूँ सहम कर | ||
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मेरे भीतर | मेरे भीतर | ||
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मैं नहीं ढो सकता पिता | मैं नहीं ढो सकता पिता | ||
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हाँ! रातों में | हाँ! रातों में | ||
नींद के बीहड़ से दूर | नींद के बीहड़ से दूर | ||
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बैठेंगे अलाव के आस-पास | बैठेंगे अलाव के आस-पास | ||
खोलेंगे अपनी-अपनी पोटली | खोलेंगे अपनी-अपनी पोटली |
01:05, 19 अप्रैल 2011 के समय का अवतरण
रात के अंतिम पहर में
नींद के बीहड़ से मीलों दूर
घूमने निकलता हूँ जब
अपने ही भीतर पाता हूँ तुम्हें
किसी बंद दरवाज़े सा
झांकने पर भीतर
दीखता है तुम्हारा रक्त-रंजित ललाट
तुम वह नहीं थे जो हो
लौट आता हूँ सहम कर
न चाहते हुए भी तुमने
व्यवस्था को गहा
लड़ते रहे
सब कुछ सहा
जो कुछ रहा
मेरे भीतर
बंद दरवाज़े के पीछे
तुम्हारा रक्त-रंजित ललाट।
मैं नहीं ढो सकता पिता
तुम्हारी तरह
इस चरमराते तंत्र को
ब्राह्मणत्व और आधुनिकता की खिचड़ी को
मैने आधुनिकता चुनी
बंद दरवाज़े के पीछे
तुम्हारी चीख सुनी।
रुको पिता रुको
मत बनो मेरे पथ-प्रदर्शक
खोजने दो अपनी राह स्वयं ही
हाँ! रातों में
नींद के बीहड़ से दूर
लौट आऊँगा तुम्हारे पास
बैठेंगे अलाव के आस-पास
खोलेंगे अपनी-अपनी पोटली
तौलेंगे अपने-अपने अनुभव
गिनेंगे अपने-अपने हिस्से के काँटे।
और फिर एक दिन
दोनों पोटलियाँ सरका दूँगा
समय की सकरी गली में
कोई शायद उनमें डाले
रंग-बिरंगे फूल खुशबू वाले।