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ओ पिता,
 
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तुम गीत हो घर के
 
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और अनगिन काम दफ़्तर के।
 
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छाँव में हम रह सकें यूँ ही
 
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धूप में तुम रोज़ जलते हो
 
धूप में तुम रोज़ जलते हो
 
 
तुम हमें विश्वास देने को
 
तुम हमें विश्वास देने को
 
 
दूर, कितनी दूर चलते हो
 
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ओ पिता,
 
ओ पिता,
 
 
तुम दीप हो घर के
 
तुम दीप हो घर के
 
 
और सूरज-चाँद अंबर के।
 
और सूरज-चाँद अंबर के।
 
  
 
तुम हमारे सब अभावों की
 
तुम हमारे सब अभावों की
 
 
पूर्तियाँ करते रहे हँसकर
 
पूर्तियाँ करते रहे हँसकर
 
 
मुक्ति देते ही रहे हमको
 
मुक्ति देते ही रहे हमको
 
 
स्वयं दुख के जाल में फँसकर
 
स्वयं दुख के जाल में फँसकर
 
  
 
ओ पिता,
 
ओ पिता,
 
 
तुम स्वर, नए स्वर के
 
तुम स्वर, नए स्वर के
 
 
नित नये संकल्प निर्झर के।
 
नित नये संकल्प निर्झर के।
 
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</poem>
'''''-- यह कविता [[Dr.Bhawna Kunwar]] द्वारा कविता कोश में डाली गयी है।<br><br>'''''
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01:07, 19 अप्रैल 2011 के समय का अवतरण

ओ पिता,
तुम गीत हो घर के
और अनगिन काम दफ़्तर के।

छाँव में हम रह सकें यूँ ही
धूप में तुम रोज़ जलते हो
तुम हमें विश्वास देने को
दूर, कितनी दूर चलते हो

ओ पिता,
तुम दीप हो घर के
और सूरज-चाँद अंबर के।

तुम हमारे सब अभावों की
पूर्तियाँ करते रहे हँसकर
मुक्ति देते ही रहे हमको
स्वयं दुख के जाल में फँसकर

ओ पिता,
तुम स्वर, नए स्वर के
नित नये संकल्प निर्झर के।