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"ॠतु वर्णन/ शास्त्री नित्यगोपाल कटारे" के अवतरणों में अंतर

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  जिन्दगी तोरे बिन रीती रीती पिया
 
  जिन्दगी तोरे बिन रीती रीती पिया
 
  कैसे कैसे के एक साल बीती पिया।।
 
  कैसे कैसे के एक साल बीती पिया।।
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  खिड़की से झांके पड़ौसी गिरधारी
 
  खिड़की से झांके पड़ौसी गिरधारी
 
  किस जतन से मदन से मैं जीती पिया।।कैसे कैसे,,,,,,,,,
 
  किस जतन से मदन से मैं जीती पिया।।कैसे कैसे,,,,,,,,,
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01:30, 19 अप्रैल 2011 के समय का अवतरण

 जिन्दगी तोरे बिन रीती रीती पिया
 कैसे कैसे के एक साल बीती पिया।।
 चैत को महीना शिशिर ॠतु आई
 पानी में धो धाके धर दई रजाई
 ठण्डक से गर्मी की हो गई सगाई
 अमियां और इमली की भावै खटाई
 भई भैंसों की पानी से प्रीती पिया।।कैसे कैसे,,,,,,,,,

 ग्रीष्म ॠतु आई लगो जेठ को महीना
 ऊँसई बतियाबे में निकरै पसीना
 अच्छो लगे प्याज संग पौदीना
 सूरज भओ दुष्मन कोई निकरै कहीं ना
 फिरूँ घर के अगीती पछीती पिया।.कैसे कैसे,,,,,,,,,
 वर्षा ॠतु सावन में चमके बिजुरिया
 बार बार डरपावे कारी बदरिया
  सारी रात बतियावें मेंदरो मिंदरिया
 ऐंसे में याद आये तोरी संवरिया
 और पपीहा बतावे प्रेम रीती पिया।।कैसे कैसे,,,,,,,,,
 क्वांर मास शरद ॠतु सपने सी मीठी
 खीर लगे दन्ने की खिचरी सी सीठी
 दिखे शरद चाँद जैसे जलती अँगीठी
 आवे की कह गये और भेजी नहिं चीठी
   ऐंसी कैसी है तोरी राजनीति पिया।।कैसे कैसे,,,,,,,,,
 पूस को महीना हेमन्त ॠतु ठण्डी
 वैरी भये नदी ताल सूनी पगडण्डी
 सीधो सो हो गओ जो सूरज घमण्डी
 सारी रात टेरे वो चकवा पाखण्डी
 लगे चूल्हे की आग शीती शीती पिया।।कैसे कैसे,,,,,,,,,
 आई बसन्त ॠरु फागुन की बारी
 तोरे बिन एक एक दिवस लगे भारी
 कोयल की कूक लगे होली की गारी
 खिड़की से झांके पड़ौसी गिरधारी
 किस जतन से मदन से मैं जीती पिया।।कैसे कैसे,,,,,,,,,