"सर फ़रोशी की तमन्ना / राम प्रसाद बिस्मिल" के अवतरणों में अंतर
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खींच कर लाई है सब को क़त्ल होने की उम्मीद | खींच कर लाई है सब को क़त्ल होने की उम्मीद | ||
− | आशिक़ों का आज | + | आशिक़ों का आज जमघट कूचा-ए-क़ातिल में है। |
यूं खड़ा मक़तल में क़ातिल कह रहा है बार बार | यूं खड़ा मक़तल में क़ातिल कह रहा है बार बार | ||
क्या तमन्ना-ए-शहादत भी किसी के दिल में है। | क्या तमन्ना-ए-शहादत भी किसी के दिल में है। | ||
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00:04, 20 अप्रैल 2011 का अवतरण
अक्सर लोग इसे राम प्रसाद बिस्मिल जी की रचना बताते हैं लेकिन वास्तव में ये अज़ीमाबाद (अब पटना) के मशहूर शायर बिस्मिल अज़ीमाबादी की हैं और रामप्रसाद बिस्मिल ने उनका शे'र फांसी के फंदे पर झूलने के समय कहा था। चूँकि अधिकाँश लोग इसे राम प्रसाद बिस्मिल की रचना मानते है इसलिए इस रचना को बिस्मिल के पन्ने पर रखा गया है। -- कविता कोश टीम
सर फ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है
देखना है ज़ोर कितना बाज़ू-ए-क़ातिल में है।
करता नहीं क्यूं दूसरा कुछ बात चीत
देखता हूं मैं जिसे वो चुप तिरी मेहफ़िल में है।
ऐ शहीदे-मुल्को-मिल्लत मैं तेरे ऊपर निसार
अब तेरी हिम्मत का चर्चा ग़ैर की महफ़िल में है।
वक़्त आने दे बता देंगे तुझे ऐ आसमाँ
हम अभी से क्या बताएं क्या हमारे दिल में है।
खींच कर लाई है सब को क़त्ल होने की उम्मीद
आशिक़ों का आज जमघट कूचा-ए-क़ातिल में है।
यूं खड़ा मक़तल में क़ातिल कह रहा है बार बार
क्या तमन्ना-ए-शहादत भी किसी के दिल में है।